पहला और सरल उपाय यह है कि बिना परवानेके व्यापार किया जाये। लोगोंमें जबतक इतना जोश नहीं आ जाता तबतक हम मताधिकारकी बात बेकार समझते हैं।
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७
२१८. केपमें संघ
केपका संघ श्री नूरुद्दीनकी अध्यक्षतामें जोर पकड़ता दीखता है। उसकी बैठककी कार्यवाही[१] हमने दी है। वह पढ़ने लायक है। जिस जोशसे यह संघ चल रहा है, उसी जोशसे यदि सार्वजनिक काम हो, तो खूबी मालूम होगी। नेताओंको यह याद रखना चाहिए कि यह समय अधिकार भोगनेका नहीं, लोक-सेवा करनेका है। तभी हमारे आसपास जो आग सुलग रही है, वह ठंडी होगी।
केपमें दो मण्डल एक ही जगह हैं, सभा (लीग) और संघ (असोसिएशन)। हम देखते हैं कि इन दोनों मण्डलोंके बीच गलत होड़ चल रही है। हमारी सलाह है कि दोनों मिलकर काम करें।
संघको हम याद दिलाना चाहते हैं कि उसके सदस्योंने लन्दन समितिके प्रति अपने कर्तव्यका पालन नहीं किया। केपकी ओरसे ५० पौंड आनेकी सम्भावना थी। परन्तु वह रकम आजतक नहीं मिली। समिति बहुत ही अच्छा काम कर रही है। और कामके हिसाबसे खर्च भी होगा ही। उस खर्चमें मदद देना दक्षिण आफ्रिकाके सभी भारतीयोंका कर्तव्य है। हम आशा करते हैं कि संघ यह काम उठा लेगा।
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७
२१९. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
जनरल बोथाकी वर्षगाँठ
जनरल बोथाका जन्म दिन शुक्रवारको था, इसलिए संघ और हमीदिया इस्लामिया अंजुमनने बधाईके तार भेजे थे। गोरोंकी ओरसे उन्हें एक बड़ी भेंट अर्पित की गई थी। इन तारोंका भेजा जाना भारतीय प्रजाके विवेकका सूचक है। हमारे तारोंसे यह सिद्ध होता है कि वे हमारे साथ न्याय करें या न करें, हम अपना विवेक नहीं खोते।
हमीदिया अंजुमनकी बैठक
नियमानुसार इस अंजुमनकी बैठक रविवारको हुई थी। सभा भवन खचाखच भर गया था। यदि कानूनकी लड़ाई सफल हुई तो उसका श्रेय अधिकतर अंजुमनको ही प्राप्त होगा। मैंने यहाँ "यदि" शब्दका उपयोग किया है, उससे किसीको डरना नहीं चाहिए। "यदि" का
- ↑ यह यहाँ नहीं दी गई।