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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारतीयोंके लिए ही बनाया गया है। मलायी लोगोंके साथ बहुत-से भारतीयोंका सम्बन्ध है, रंगदार लोगोंके साथ उनका स्नेहभाव है, काफिरोंको वे अपने यहाँ नौकर रखते हैं। एशियाई कानून उपर्युक्त सभी लोगोंकी नजरमें भारतीयोंको नीचे गिराता है। उपनिवेश में दूसरे लोगों तथा मलायी, रंगदार और काफिरोंपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, सिर्फ भारतीयोंको उनकी बदनामी करनेके लिए अलग किया गया है।

अन्तिम आपत्तिका उत्तर एशियाई प्रतिस्पर्धाका डर है। यह स्पष्ट है। इस बातको मेरा संघ स्वीकार करता है और इसलिए कहता है कि हम स्वेच्छया पंजीकृत होंगे, या अपनी अँगूठा निशानी या शिनाख्त देंगे। इससे हमारी प्रतिष्ठा बनी रहेगी, गोरोंका काम हो जायेगा और यहाँके निवासियोंको संरक्षण मिल जायेगा। आपकी यह मान्यता मालूम होती है कि स्वेच्छया पंजीयनसे झूठे प्रवेशकर्ताओंपर अंकुश नहीं लगता। ऐसे लोगोंके अस्तित्वको स्वीकार करनेसे मेरा संघ इनकार नहीं करता। लेकिन आप जो मानते हैं कि ऐसे लोग बच जायेंगे, यह भूल है। क्योंकि जो स्वेच्छया पंजीकृत नहीं होते उनपर आप नया कानून लागू कर सकते हैं। इसके अलावा एक निश्चित अवधिके बाद सबके प्रमाणपत्र एक साथ भी देखे जा सकते हैं। उस वक्त जिसके पास नया पंजीयनपत्र न हो, उसे प्रवासी अधिनियम के अन्तर्गत उपनिवेशके बाहर निकाला जा सकता है।

अन्तमें मैं इतना कहता हूँ कि उचित शिकायतोंके सम्बन्धमें मेरे देशभाइयोंने गोरोंकी इच्छाके अनुसार चलनेका प्रयत्न किया है, जबकि गोरोंने भारतीयोंका असन्तोष दूर करनेके लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने आँखें मूंदकर भारतीयोंका विरोध करना ही अपना कर्तव्य समझा है। भारतीय क्या चाहते हैं, उन्होंने इसे जानने तक की परवाह नहीं की। आप अपने धंधेके कारण भारतीयोंके सम्पर्कमें काफी आये हैं तो क्या आप जरा इस मामले पड़ेंगे? हमारी दृष्टिसे सम्पूर्ण प्रश्नको देखेंगे? इस प्रकार छानबीन करके देखिए कि जरा धैर्य और परस्पर सहायतासे समझौता किया जा सकता है या नहीं।

झूठे गवाहोंको सूचना

जोहानिसबर्ग में श्री वेंडरबर्ग के पास पाँच भारतीयोंपर एक लूटका मुकदमा चला था। उसमें फरियादी तथा कुछ दूसरे भारतीयोंने जो गवाही दी वह मजिस्ट्रेटको झूठी मालूम हुई। इसपर उसने गवाहोंको फटकारा और अभियुक्तोंको बिना जाँच किये छोड़ दिया। उसने खुली अदालतमें, जहाँ बहुत-से भारतीय थे, सबसे कहा कि आजकल भारतीयोंमें झूठे मुकदमे बहुत होते हैं। यदि ऐसे मुकदमे फिर लाये गये तो झूठी गवाहीके लिए मुकदमा चलाया जायेगा। इस बातको प्रकाशित करते हुए मुझे दुःख होता है। लेकिन इसकी ओर सबका ध्यान आकर्षित करना जरूरी समझता हूँ। इस तरहके मुकदमोंसे भारतीयोंकी इज्जत जाती है, और हम दूसरोंकी नजरमें गिरते हैं। मेरा खयाल है कि गवाह तो खिलाड़ियोंके हाथके मोहरे थे, सच्चे गुनहगार खिलाड़ी हैं। उनसे मुझे कहना है कि थोड़ेसे पैसोंके लालचमें गरीबोंको बरबाद करना और अपने साथ अपने समाजको भी कलंकित करना शोभा नहीं देता। झूठे मुकदमे बनाकर कमाई करने के बजाय कमाईके और भी दूसरे तरीके हो सकते हैं।