अनुमतिपत्र खो जानेपर क्या किया जाये?
एक भाईने यह प्रश्न पूछा है। इसका उपाय आसान है। और वह है, बिना अनुमतिपत्रके घूमें-फिरें। जेलका डर रहा नहीं, इसलिए यदि मजिस्ट्रेटके पास खड़ा किया जाये तो बेधड़क जायें। जाँच होनेपर उन्हें छोड़ दिया जायेगा। अन्तिम नोटिस निकल जानेके बाद वर्तमान अनुमतिपत्र खोयेके समान हो जायेगा; क्योंकि पुराना अनुमतिपत्र दिखानेसे कोई किसीको छोड़नेवाला नहीं है। इसलिए नये कानूनका विरोध करनेवाले अनुमतिपत्र खो जानेका डर क्यों रखें?
नई बला
स्वर्ण-कानून (गोल्ड लॉ) के अन्तर्गत व्यापारका परवाना नहीं दिया जा सकता, इस तरहका एक मुकदमा चल रहा है। मेरा खयाल है, सरकार ऐसा मुकदमा चलाकर सरासर गलती कर रही है। यह मामला उच्च न्यायालयमें ले जाया जायेगा, इसलिए इसके बारेमें विशेष कहना अनावश्यक है। सरकार स्वर्ण-कानून लागू करना चाहती है। इसका मतलब यह हुआ कि इस नये कानूनके सामने घुटने टेकनेवालोंके लिए चैन नहीं है। लेकिन यदि यह खूनी कानून गया तो मेरे विचारमें स्वर्ण-कानून अपने-आप मर जायेगा।
स्मट्सका उत्तर
प्रिटोरियाके कुछ लोगोंने गुलामीकी अर्जी दी थी और श्री स्मट्सने उसका उत्तर[१] भी ऐसा ही दिया है जो गुलामोंको फबे। उन्होंने कहा है कि जो एशियाई कानूनके अनुसार चलेंगे उनकी बेड़ीकी जाँच काफिरोंकी जगह गोरे करेंगे। शेष बातें स्वीकार नहीं की जा सकतीं। सम्भव हुआ तो अगले सप्ताह में उस उत्तरका पूरा अनुवाद दूँगा। वह जानने योग्य है। आशा है, उसके साथ जोहानिसबर्गके आन्दोलनकी और भी महत्त्वपूर्ण बातें दूँगा।
इंडियन ओपिनियन, ५-१०-१९०७
२२०. पत्र: मगनलाल गांधीको
[जोहानिसबर्ग]
अक्तूबर ६, १९०७
मैंने श्री बद्रीके[२] कागजपत्र अब खोज लिये हैं। उन्होंने श्री लोगनसे जो जायदाद खरीदी थी उसका पंजीयन हो चुका था और हस्तान्तरणका दस्तावेज मेरे पास है। क्या वे यही चाहते थे? पता लगाकर मुझे लिखो।
तुम्हारा शुभचिन्तक,
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४७६७) से।