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२२१. पत्र: उपनिवेश सचिवको

जोहानिसबर्ग
अक्टूबर ७, १९०७

माननीय उपनिवेश सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

मेरे संघको समितिने मुझे निर्देश दिया। कि मैं आपके उस भाषण के बारेमें आपको अत्यन्त विनयपूर्वक कुछ शब्द लिखूं जो आपने अपने निर्वाचकोंके सामने दिया था और जिसमें आपने एशियाई कानून संशोधन अधिनियमका उल्लेख किया था। यदि पत्रोंमें छपा हुआ विवरण ठीक है तो मेरी नम्र रायमें उसमें तथ्योंके सम्बन्धमें कई गलत-बयानियाँ हैं।

मेरे संघको इस बात से बहुत दुःख पहुँचा है कि आप एक ऐसे उत्तरदायित्वपूर्ण पदपर आसीन होकर भी मन्दीके कारणके बारेमें जन-साधारणमें प्रचलित भ्रान्तिका ही प्रचार करें। व्यापार करनेवाले इस बातको जोर देकर कह चुके हैं कि इस भारी मन्दीका कारण कुछ और है। कुछ भी हो, उसका प्रभाव भारतीयोंपर उतना ही पड़ा है जितना यूरोपीयोंपर।

मेरा संघ इस वक्तव्यका पूर्णतया खण्डन करता है कि इस समय उपनिवेशमें १५,००० भारतीय हैं। मेरे संघको अंकोंका जो विश्लेषण प्राप्त हुआ है, वह शीघ्र ही आपको भेज दिया जायेगा। उससे आपको पता चलेगा कि इस समय ट्रान्सवालमें ७,००० से अधिक भारतीय नहीं हैं।

आपने यह कहनेकी कृपा की है कि पुराने कानूनके अन्तर्गत जो प्रमाणपत्र जारी किये गये थे उनकी दूसरी जाली प्रतियाँ तैयार करके उनको बेचा गया है और बम्बई, जोहानिसबर्ग और डर्बनमें ऐसे स्थान मौजूद हैं जहाँ ऐसे जाली प्रमाणपत्र अमुक रकम देकर खरीदे जा सकते हैं। मेरा संघ आपके इस वक्तव्यका पूरी तरह खण्डन करता है और विनयपूर्वक निवेदन करता है कि इस मामलेकी सार्वजनिक जाँच की जाये। किन्तु मेरे संघको इस बातका पता है कि पंजीयन कार्यालयका एक मुंशी जाली अनुमतिपत्रोंका व्यवसाय करता था और उसने निःसन्देह कुछ भारतीयोंको, जिनको न तो अपनी राष्ट्रीयताका और न अपने सम्मानका ध्यान था, अपना साधन बनाया। परन्तु वह बात, आपने जनताके सामने जो-कुछ रखा है उससे, बिलकुल अलग है।

आपने यह भी कहनेकी कृपा की है कि भारतीयोंने अंगुलियोंके निशानोंके कारण इस अधिनियमका विरोध किया है। मेरा संघ सरकारसे कई बार निवेदन कर चुका है कि भारतीयोंके विरोधका मौलिक कारण अँगुलियोंका निशान नहीं, बल्कि अनिवार्यताका सिद्धान्त तथा कानूनका वह सम्पूर्ण उद्देश्य है जो भारतीयोंको अपराधी करार देता है। इस कानूनके खिलाफ जब पहले-पहल एतराज पेश किये गये थे तब अँगुलियोंके निशानोंका जिक्र तक नहीं किया गया था। साथ ही मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि जो भारतीय ट्रान्सवाल आये हैं उनसे भारत में