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पत्र: उपनिवेश सचिवको

कभी भी न तो अँगुलियोंके और न ही अँगूठोंके निशान लगवाये गये थे। भारतमें निश्चय ही कुछ मामलोंमें अँगूठोंके निशान लिये जाते हैं, किन्तु उनका सम्बन्ध अपराधोंसे नहीं होता। अँगुलियोंके निशान केवल अपराधियोंसे अथवा उनसे ही लिये जाते हैं, जिनका अपराधोंसे कोई सम्बन्ध होता है। अँगूठेका निशान जहां लिया जाता है वहाँ वह नियम केवल निरक्षरोंपर ही लागू होता है।

मेरे संघको सरकारकी इस इच्छाका हमेशा ही पता रहा है कि वह इस कानूनको पूरी तरह और कठोरतासे अमलमें लाना चाहती है। किन्तु मुझे एक बार फिर यह कहनेकी अनुमति दी जाये कि इस कानूनके सामने झुकने तथा सोच-विचार कर की गई अपनी शपथको तोड़नेसे हमारे समाजका जो पतन होगा, उसके मुकाबले कानूनका कठोरसे कठोर प्रशासन भी कुछ नहीं है। मेरा संघ यह अनुभव करता है कि यद्यपि आपने यह घोषणा कर दी है कि आपने इस प्रश्नके भारतीय दृष्टिकोणका विशेष रूपसे अध्ययन किया है, फिर भी विरोधकी मूल भावना और साथ ही मेरे संघ द्वारा उठाये हुए अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दोंपर आपने बिलकुल ही ध्यान नहीं दिया।

अन्तमें मैं इस बातको फिर दोहरा देना चाहता हूँ कि भारतीयोंके अत्यधिक संख्या आव्रजन तथा व्यापारमें अनियन्त्रित प्रतियोगिताके विरुद्ध आपके एतराजकी मेरे संघने सदा ही कद्र की है। और समाजकी नेकनीयती प्रकट करनेकी दृष्टिसे उसने विनम्रतापूर्वक ऐसे प्रस्ताव पेश किये हैं, जिनसे दोनों एतराज दूर हो जायें। किन्तु, भारतीयोंके लिए यह असम्भव है कि वे इस कानूनको स्वीकार कर अपना रहा-सहा सम्मान भी खो बैठें, क्योंकि यह कानून सही वस्तुस्थितिसे अनभिज्ञता के कारण बनाया गया है, कार्यरूपमें एक हद तक दमनकारी है और मेरा संघ जिस समाजका प्रतिनिधित्व करता है उसकी धार्मिक भावनाओंको चोट पहुँचाता है।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-१०-१९०७