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२२२. पत्र: 'रैंड डेली मेल' को

जोहानिसबर्ग
अक्तूबर ९, [१९०७]

सेवामें

सम्पादक
['रैंड डेली मेल'

जोहानिसबर्ग]
महोदय,

आपने श्री सुलेमान मंगा[१] तथा पूनिया[२] नामक एक भारतीय महिलाके, जिनके साथ घोर दुर्व्यवहार किया गया था, मामलोंको उत्साहपूर्वक उठा लेनेकी कृपा की थी। मैं आपका ध्यान एक तीसरे मामलेकी ओर आकर्षित करता हूँ, जो मेरे देखने में आया है। इस मामले में जो अकारण अपमान किया गया है, वह पहले दोनों मामलोंसे अधिक नहीं, तो कम भी नहीं है।

श्री एन्थनी पीटर्स जन्मत: भारतीय ईसाई और नेटालके एक पुराने सरकारी नौकर हैं। इस समय वे पीटरमैरित्सबर्गके मुख्य न्यायाधीशकी अदालतमें दुभाषियेका काम कर रहे हैं। रविवारकी बात है, वे शनिवारको पीटरमैरित्सबर्गसे चलनेवाली जोहानिसबर्ग मेलसे जोहानिसबर्ग जा रहे थे। उनके पास रियायती टिकट और रेलवेकी ओरसे मिला हुआ एक प्रमाणपत्र था, जिसमें उनके सरकारी पदका विवरण था। फोक्सरस्टमें जाँच करनेवाले पुलिस अधिकारीने उनसे कड़ी जिरह की। श्री पीटर्सने अपना अनुमतिपत्र दिखलाया, जो उन्हें भारतीयोंके स्वेच्छया अँगूठा-निशान देनेसे पहले दिया गया था। इससे अधिकारीको सन्तोष नहीं हुआ। अतः श्री पीटर्सने वह रियायती टिकट दिखलाया, जिसका मैंने उल्लेख किया है; अपने हस्ताक्षर देनेका प्रस्ताव किया; किन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। और अधिकारीने उनका यह कहकर अपमान किया कि शायद आप और किसीका रियायती टिकट लेकर आये हैं। इसपर श्री पीटर्सने अपनी छड़ी तक दिखलाई, जिसपर उनके नामके प्रथम अक्षर अंकित थे। फिर, उन्होंने अपनी कमीज भी दिखलाई, जिसपर उनका पूरा नाम था। किन्तु यह भी सन्तोषजनक नहीं समझा गया। तब उन्होंने तीन दिन बाद लौटनेकी जमानतके लिए रुपया जमा करनेका प्रस्ताव किया; किन्तु अधिकारीने एक काफिर पुलिसको आज्ञा दी कि वह श्री पीटर्सको अक्षरशः डिब्बेसे बाहर घसीट ले। जब श्री पीटर्सको सार्जेंट मैन्सफील्डके सामने पेश किया गया तो उसने उस भयंकर गलतीको अनुभव करते हुए माफी मांगी और उनको छोड़ दिया। लेकिन इतनेसे ही भला सन्तोष कैसे होता? इस अपमानके अलावा उन्हें फोक्सरस्टमें, जहाँ वे किसीको जानते नहीं थे, लम्बी तथा थका देनेवाली प्रतीक्षा करनी पड़ी और साथ ही उनकी तीन दिनकी छोटी-सी छुट्टीका भी बड़ा-सा हिस्सा बेकार गया। श्री पीटर्स आज रातको नौकरीपर लौटेंगे। इस घटनाके बारेमें मुझे टिप्पणी करनेकी आवश्यकता नहीं है। मुझे केवल यही कहना है कि इस देश में

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २८८-८९ और २९४।
  2. वही, पृष्ठ ४६३-६४।