२. वीर क्या करें?
कदम आगे बढ़ाओ! अब देर मत करो!
आज उठेंगे, कल उठेंगे, कहकर दिन मत बढ़ाओ। सोचते-सोचते मार्गमें बड़े विघ्न आ जाते हैं। कुटुम्बकी माया कैसे छूट सकती है, कुटुम्बका क्या होगा, इस तरहके विचारोंमें जो फँसा रहता है वह बिलकुल स्त्रैण है। वह रणमें क्या जायगा? जबतक वह इधर विचारोंमें ही डूबा हुआ है, उधर शत्रु छापा मार देगा और तब वह घबड़ा जायेगा, रक्षा करना भारी पड़ जायेगा। आग लगनेपर कुआँ खोदनेवाला पश्चात्-बुद्धि कहलाता है। बाढ़ आ जानेपर बाँध बनानेवालेको क्या कभी सफलता मिलेगी?
इसलिए सजधजकर एक साथ रणमें लड़ने चलो। शत्रुके सामने अपना भाला लेकर डट जाओ और उसे ललकारो।[१]
ट्रान्सवालका नया कानून अब भी धूम-धड़ाका मचाये हुए है। कहावत तो ऐसी है कि जो गरजता है सो बरसता नहीं, और जो भौंकता है सो काटता नहीं। किन्तु इसमें शक नहीं कि नया कानून तो जैसा गरज रहा है, वैसा बरसेगा भी। जनरल बोथाके[२] आते ही, सम्भव है, वह 'गज़ट' में प्रकाशित हो जायेगा। अतः इस कानूनके खिलाफ जेलके प्रस्तावके[३] रूपमें जो लड़ाई चल रही है उसपर और अधिक विचार करें।
उपर्युक्त भजन देखेंगे तो उसमें कवि कहता है कि साहसका काम करते समय विचारके फेरमें पड़ना बेकार है। युद्धमें कूदनेवाले इस बातका विचार नहीं करते कि कुटुम्बका क्या होगा, व्यापारका क्या होगा। भारतीय जनता केवल ईश्वरपर ही भरोसा रखनेवाली है। हमने उसी ईश्वरके सामने शपथ लेकर नये कानूनके सामने न झुकनेका निर्णय किया है। वह निर्णय करनेके पहले विचार करना योग्य था और वह विचार किया
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मूल गुजराती गीत इस प्रकार है:
पगला भरवा मांडो रे!
हवे नव बार लगाड़ओ रे!
आज ऊठशुं काल ऊठशुं,
लम्बावो नहि दहाड़ा;
विचार करतां विधनो मोटां,
वचमां आवे आड़ा;
कुटुंब माया क्यम छोड़ाये;
कुटुंबनुं वयम थाशे;
एम फस्यो ते जनानी पूरो,
रणमां शुं पछी जाशे?
विचार करतां खाली पड़तां,
शतरू छापो मारे;
बचाव करवो गभरातां ते,
पछी पड़े थई भारे;
आग लागते कुनो खोदवी,
पच्छम बुद्धिया थावुं;
पाणी आवे पाल बाँधवी,
तेमां ते शुं फाव्युं?
सजी करीने सहु जण साथे,
रणमां लड़वा चालो;
शतरूनी सामे रही ऊभा
घुरकावीने भालो। - ↑ लुई बोथा; १९०७-१० में ट्रान्सवालके और १९१०-१९ में दक्षिण आफ्रिका संघके प्रधानमन्त्री।
- ↑ सितम्बर १९०६ का प्रसिद्ध चौथा प्रस्ताव; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४।