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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी गया। अब विचार करनेका समय नहीं रहा। अब तो जो निश्चय किया गया है उसपर दृढ़ रहनेका समय आ गया है। शेख सादी[१] 'गुलिस्ताँ' में कह गये हैं कि मनुष्य जितना विचार अपनी रोजीके बारेमें करता है, उतना ही यदि रोजी देनेवालेके बारेमें करे तो निस्सन्देह स्वर्गमें उसका स्थान फरिश्तोंसे भी ऊँचा हो जायेगा। उसी प्रकार इस बार हमें रोजी, कुटुम्ब या व्यापारका विचार करनेके बजाय उन सबको पालनेवाले, उनका उत्कर्ष करनेवालेका विचार करके अंगीकार किये हुए कामको पूरा करना है। सब छोड़ देंगे, किन्तु सबके अन्तरमें रहनेवाले परमेश्वरपर भरोसा रखकर यदि हम कोई काम करेंगे तो वह मालिक हमें कभी नहीं छोड़ेगा।

अब हम अपने राज्यकर्ताओंका उदाहरण लें। जब बोअर लोगोंने महान ब्रिटिश प्रजासे युद्ध शुरू किया था, स्वर्गीय क्रूगरने अपने कुटुम्ब या अपनी दौलतका विचार नहीं किया। जनरल जुबर्ट लड़ते-लड़ते मरे । जनरल स्मट्स' भी लड़े थे। डॉ० काउज़ने दो वर्षकी कैद भोगी, उनकी जोहानिसबर्गकी जायदाद बर्बाद हो गई। श्री डी'विलियर्स, जो इस समय मुख्य न्यायाधीश है, कैद भोग चुके हैं। उनके पैरमें गोलियाँ लगी थीं। जनरल बोथा स्वयं आखिरी समय तक लड़े थे। बोअर औरतें भी बहुत-से कष्ट सहन करते हुए शान्त बैठी रहीं। वे अपने-अपने बच्चों और पतियोंको हिम्मत देती थीं। इससे आज वे अपना खोया हुआ सब-कुछ वापस पा गये हैं।

अंग्रेज स्वयं भी क्या करते आये हैं, यह हम जानते हैं। जॉन हैम्डनने बर्बाद होकर लोगोंके दु:ख दूर किये। लॉर्ड कॉलिन कैम्बेल थका-मांदा चीनसे आया था। हुक्म मिलते ही वह १८५८ में फिर रवाना हो गया। उसने घड़ी-भर भी आराम नहीं किया। लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टनके आठ निकटवर्ती रिश्तेदार बोअर युद्धमें उपस्थित थे। प्रधान मन्त्री स्वर्गीय लॉर्ड सैलिस्बरीका लड़का मेफेकिंगमें घिर गया था। लॉर्ड राबर्ट्सका इकलौता लड़का युद्ध में मारा गया, और आज उनका कोई पुरुष-उत्तराधिकारी नहीं है।

ट्रान्सवालके भारतीय समाजको जो-कुछ भी करना है, वह इन उदाहरणोंके सामने कुछ नहीं है। हमें राज्यका विरोध नहीं करना है, न हमें हथियार लेकर ही लड़ना है। हमें

१. शेख मुस्लिाद्दीन सादी (१९८४-१२९२); प्रसिद्ध फारसी कविः गुलिस्तां और घोस्ताँके लेखक।

२. टान्सवालके राष्ट्रपति (१८८३-१९००) देखिए खण्ड ४, पृष्ठ २४३-४।

३. उपनिवेश-सचिव, १९०७-१० दक्षिण आफ्रिका संघके प्रधानमन्त्री, १९१९-२४।

४. जोहानिसबर्गके सरकारी वकील; आत्मकथा (भाग २, अध्याय १३) में गांधीजीने इनके विषय में लिखा है।

५. (१५९४-१६४३); अंग्रेज देशभक्त और संसदीय अधिकारोंके समर्थक देखिए, खण्ड ५, पृष्ठ ४८९।

६. (१७९२-१८६३); १९५३-५६ के क्रीमिया युद्ध में लड़े थे; १८५७ में भारत के प्रधान सेनाध्यक्ष, नियुक्त हुए थे। लगता है, यहाँ गलतीसे क्रीमिया और १८५७ के लिए क्रमशः चीन और १८५८ दे दिये गये हैं।

७. भारत-मंत्री, १८९५-१९०३। ८. (१८३०-१९०३); इंग्लेंडके प्रधानमन्त्री १८८५-६, १८८६-९२ और १८९५-१९०२।

९. केप प्रदेशका एक नगर, जिसपर १८९९-१९०२ के बोअर युद्धके समय घेरा डाला गया था। देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २३६।

१०. (१८३२-१९१४); १८८५ से १८९३ तक भारत और १८९९ से १९०० तथा १९०१ से १९०४ तक दक्षिण आफ्रिकाके प्रधान सेनाध्यक्ष।

  1. शेख सादी¹