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सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय

और ५०० पौंड श्री रिचको देनेके लिए। इस तरह हिसाब लगानेसे १,००० पौंड होते हैं। फुटकर खर्च में कटौती की जा सकती है, किन्तु श्री रिचके खर्च में नहीं; क्योंकि उतना खर्च तो विलायतमें सहज ही हो जाता है।

यह प्रश्न हर भारतीयके लिए विचार करने योग्य और हर संघके लिए हाथमें लेने योग्य है। समितिका खर्च दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक हिस्सेसे पूरा किया जाना चाहिए।

यदि केप, रोडेशिया, डेलागोआ-बे, नेटाल और ट्रान्सवाल मिलकर इतना खर्च उठा लें तो अधिक नहीं होगा। इतना खर्च किया जानेपर भी सामान्यतः ऐसी समिति, और ऐसा काम मिल नहीं सकता। श्री रिच समितिके कामको वेतन-भोगी नौकरकी तरह नहीं, बल्कि अपना काम समझकर करते हैं, इसलिए उपर्युक्त रकमसे काम चल सकता है।

इस सम्बन्ध में पाठकोंके जो भी विचार संक्षेपमें आयेंगे, उन्हें प्रकाशित किया जायेगा। यदि कोई इस सम्बन्धमें पैसे भेजना चाहें तो हम स्वीकार करेंगे। भेजनेवालोंको आखिरमें संघकी रसीद मिलेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-१०-१९०७

२२६. स्मट्सका भाषण

श्री स्मट्सने प्रिटोरियामें जो भाषण दिया उसका पूरा अनुवाद हमने अपनी जोहानिसबर्गकी चिट्ठी में दिया है। वह बहुत ही पढ़ने व विचार करने योग्य है। श्री स्मट्स बड़े गर्व से बोले हैं। किन्तु ईश्वर किसीका गर्व टिकने नहीं देता। वही हाल श्री स्मट्सके गर्वका होना सम्भव है।

उन्होंने जितना गर्व किया है उतना ही उनका अज्ञान है। श्री ईसप मियाँने उन्हें समुचित उत्तर दे दिया है, यह देखकर हम उन्हें बधाई देते हैं।

श्री स्मट्स ऐसे बोलते हैं, मानो ब्रिटिश सरकारकी उनके मनमें कोई बिसात नहीं। उनके इन शब्दोंका, सम्भव है, उदारदलीय पक्ष भी विरोध करेगा—यद्यपि हमें इसकी कुछ भी परवाह नहीं कि वह पक्ष उनका विरोध करता है या नहीं करता।

श्री स्मट्सके अज्ञानके उदाहरण लें। उनका कहना है कि हम लोग अँगुलियोंकी छापके सम्बन्धमें ही लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बात बिलकुल बेहूदा है। यह ठीक है कि अँगुलियोंकी छापकी बात भी एक प्रश्न है, लेकिन हमारी लड़ाई उसीपर आधारित नहीं है। लड़ाईका मुख्य कारण यह है कि यह कानून हमें अपराधी और झूठा मानकर हमारे व्यक्तित्वपर हमला करता है, हमें गोरे तथा अन्य काले लोगोंके सामने गिराता है और निर्माल्य समझकर हमें कुचल देना चाहता है। इन सब बातोंको नजरअंदाज कर, केवल अंगुलियोंकी छापकी बातपर जोर देकर, श्री स्मट्स हमारा मजाक उड़ाते हैं और गोरोंको हँसाते हैं। इस असत्य तथा अन्य आरोपोंका श्री ईसप मियाँ तीखे शब्दोंमें श्री स्मट्सको जवाब दे चुके हैं। उन्होंने हमपर यह आरोप लगाया है कि बम्बई, जोहानिसबर्ग तथा डर्बनमें झूठे अनुमतिपत्र बेचनेके लिए भारतीय कार्यालय चल रहे हैं। यह छोटी-मोटी बात नहीं है।