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२२७. वाईबर्गका भाषण

श्री वाईबर्गने ब्लूमफॉन्टीनमें जो भाषण दिया है उसका सारांश[१] हमने अन्यत्र दिया है। श्री वाईबर्गने कहा है कि गोरोंको यदि उन्नति करनी है तो काले लोगोंको बिलकुल अलग देशमें रखा जाये, जिससे गोरोंका कालोंसे जरा भी संसर्ग न हो। यह कहना आवश्यक नहीं है कि काले लोगोंको अलग निकाल देनेमें एशियाइयोंका अलग किया जाना भी शामिल है। श्री वाईबर्गके शब्दोंमें ऐसा अर्थ समाया हुआ है। भारतीय लोग गोरोंसे अधिक सभ्य ही नहीं हैं, उनसे बहुत ही प्राचीन सभ्यताका दावा करते हैं। श्री वाईबर्गको स्वार्थवश इस बातका खयाल तक नहीं। इसलिए स्पष्ट रूपसे कहा जाये तो इसका अर्थ यह होता है कि यदि श्री वाईबर्गका वश हो तो कल सबेरे वे भारतीयोंको अकेले रहनेके लिए रवाना कर देंगे। वे या उनके इस कामको कर सकेंगे या नहीं, यह बहुत-कुछ इसपर निर्भर है कि भारतीय इस समय कितना बल दिखाते हैं। यदि वर्तमान लड़ाईमें भारतीय पीछे हट गये तो गोरे उन्हें बेदम समझकर अलग रहनेके लिए निकाल देंगे; इसकी भनक अभीसे सुनाई पड़ रही है। तब क्या भारतीय इस स्थितिको समझकर सतर्क नहीं रहेंगे? एक ओर श्री स्मट्सने कहा है कि कानूनके सामने नहीं झुकोगे तो यह करेंगे और वह करेंगे; दूसरी ओर श्री वाईबर्गने चेतावनी दी है, यद्यपि घुमा-फिराकर, कि यदि हम कानूनके सामने झुक गये (अर्थात् निर्माल्य हैं, इसका निश्चय होने दिया) तो हमें अलग रहनेके लिए निकाल देने में कुछ भी देर नहीं लगेगी। श्री स्मट्सकी धमकीसे यदि कोई डर गया हो तो उसके लिए श्री वाईबर्गके शब्द कम ध्यान देने योग्य नहीं हैं। उपाय केवल एक ही है; और वह है कि भारतीय इस लड़ाईमें अटल रहकर अपना पानी दिखा दें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-१०-१९०७

२२८. केपके भारतीय

केपका प्रवासी-कानून ज्यों-ज्यों हम पढ़ते हैं त्यों-त्यों उसके लिए हम केपके भारतीय नेताओंको दोषका पात्र समझते हैं। फाईबर्गके श्री धारशीकी ओरसे जो मुकदमा चलाया गया था उसे हम बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उसका आवश्यक विवरण हमने अंग्रेजीमें दिया है और उसपर टिप्पणी भी लिखी है।[२] यहाँ उसकी उतनी ही हकीकत दे रहे हैं जितनी समझमें आ सके।

श्री धारशी १८९७ से केपमें व्यापार करते हैं। उन्होंने भारत जानेके लिए अठारह महीनेकी अवधि वाला अनुमतिपत्र माँगा। अधिकारीने वह अनुमतिपत्र देने से इनकार कर दिया और एक वर्षकी अवधिका अनुमतिपत्र देनेकी रजामन्दी दिखाई। श्री धारशीने अधिकारके आधारपर अनुमतिपत्रकी मांग की। अधिकारीने कहा कि उन्हें अधिकार कुछ भी नहीं है। अनुमतिपत्र देना या न देना अधिकारीपर निर्भर है। इसपर श्री धारशीने अदालतमें मुकदमा दायर किया।

  1. यहाँ नहीं दिया गया।
  2. देखिए "केपके भारतीय", पृष्ठ २७७-७८।