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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मानकर ही मैं इस अर्जीमें शामिल हुआ। क्योंकि औरोंकी तरह मैं भी मानता हूँ कि कानून रद नहीं हो सकता। इसलिए बेहतर रास्ता यही था कि सरकारसे समझौता करके उसमें परिवर्तन कराये जायें; और इस तरह समझौतेसे काम चलाया जाये। ब्रिटिश भारतीय संघका आन्दोलन सच्चा है। उससे मेरी पूरी सहानुभूति है। और मैं चाहता हूँ कि खुदा संघकी पूरी मदद करे।

स्मट्स साहबका भाषण

स्मट्स साहबने अपने मतदाताओंके समक्ष भाषण[१] दिया है। उसमें उन्होंने नये कानूनपर भी टीका की है। उसका अनुवाद नीचे देता हूँ:

एक दूसरा एशियाई प्रश्न भी है, और वह है ट्रान्सवालमें रहनेवाले भारतीय और चीनियोंके बारेमें। दक्षिण आफ्रिकाकी स्थायी आबादीको तोड़नेवाले ये लोग हैं। पुराने राज्यमें यदि भारतीय १८८५ के कानूनके अनुसार पंजीकृत होकर निर्धारित रकम न देते तो रह नहीं सकते थे। सभी भारतीयोंका उस कानूनके अन्तर्गत पंजीयन किया जाता था। उन्होंने व्यापारमें प्रतिस्पर्धा की, इसलिए डच संसदने निर्णय किया था कि उन्हें 'बाजार' में ही व्यापार करने की अनुमति दी जाये। लेकिन ब्रिटिश सरकार बीचमें आई और उसने कहा कि ये लोग ब्रिटिश प्रजा हैं और लन्दन-समझौतेके अनुसार सारी ब्रिटिश प्रजाके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। इसलिए 'बाजार'का कानून अमलमें नहीं आ सका। इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय व्यापारी सब जगह फैल गये। वे बिना परवानेके व्यापार करने लगे और, इसलिए, गोरे व्यापारियोंसे उनकी स्थिति अच्छी हो गई। इतनी खराब हालत थी, फिर भी ब्रिटिश सरकारकी लिखा-पढ़ीके कारण लड़ाईके पूर्व तक चलती रही। उसका नतीजा आप प्रिन्सले स्ट्रीट, पीटर्सबर्ग, पॉचेफ्स्ट्रम और दूसरी जगहोंमें देख सकते हैं। इन जगहोंका व्यापार भारतीयोंके हाथमें है। लोग पूछा करते हैं कि देशमें भुखमरी क्यों आई? व्यापार क्यों बैठ गया है?

इसका एक कारण भारतीय व्यापार है। जैसा नेटालमें हो रहा है वैसा ही भारतीय प्रजा यहाँ भी करना चाहती। वह सब व्यापार ले लेना चाहती है। उसका इलाज हमने किया है। उसके लिए हमने पंजीयन कानून पास किया है। उस कानूनको पास करते समय किसी सदस्यने उसका विरोध नहीं किया। मैं जानता हूँ कि इस कानूनके मार्ग में अड़चनें आयेंगी, इसलिए यह क्या है, इसके बारेमें कहना चाहता हूँ। यहाँ भारतीय अधिक संख्या में हैं, इसलिए हमने कानूनको सख्त बनाया है। ट्रान्सवालमें १५,००० भारतीय और १२,०० चीनी व्यापारी हैं। पहलेके कानूनके आधारपर दिये गये प्रमाणपत्रोंकी जाली प्रतियाँ निकाली जाती हैं और बिकती हैं। बम्बई, जोहानिसबर्ग और डर्बनमें ऐसे स्थान हैं जहाँसे ऐसे जाली प्रमाणपत्र अमुक कीमत देनेपर प्राप्त किये जा सकते हैं। और भारतीय-भारतीयके बीचका अन्तर जाना नहीं जा सकता, इसलिए अँगुलियोंकी निशानी लेकर पंजीयन करनेका निर्णय किया गया है। भारतीय प्रजा इसे

  1. भाषणकी मूल अंग्रेजी रिपोर्ट १२-१०-१९०७ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुई थी। देखिए "स्मटसका भाषण", पृष्ठ २८०-८१ भी।