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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३१७

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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

अपमानजनक मानती है। (हँसी)। भारतीयोंका शिष्टमण्डल ब्रिटिश सरकारके पास गया था। लेकिन फिर भी बड़ी सरकारने इस कानूनको मंजूर कर दिया है। भारतीयोंकी दलीलको मैंने स्वयं देखा है। उसमें क्या है? उन्हीं लोगोंको भारत छोड़नेके पहले अँगुलियोंकी निशानी देनी पड़ती है। पेंशनयाफ्ता सिपाही या अधिकारी अँगुलियोंकी निशानी देने के बाद ही पेंशन प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय शिष्टमण्डलके इंग्लैंड जानेपर ये सारी बातें प्रकट हुई। भारतीय सोचते हैं कि वे सरकारको बेवकूफ बना देंगे, लेकिन कुछ ही समय में उनका भ्रम दूर हो जायेगा।

भारतीयोंको पंजीकृत होनेके लिए समय दिया गया है। सरकारको मालूम हुआ है कि पंजीयन कार्यालयके पास धरना दिया जाता है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बहुत कम लोग पंजीकृत होते हैं। किन्तु यह कह देना उचित होगा कि हर चीजकी सीमा होती है। कानून सख्तीसे अमलमें लाया जायेगा और जो भारतीय अवधिके अंदर पंजीकृत नहीं होंगे उन्हें निर्वासित किया जायेगा। नया नोटिस निकाला जा चुका है कि जिनके पास पंजीयनपत्र नहीं हैं, उन्हें दिसम्बरके बाद परवाने नहीं दिये जायेंगे और सारी दूकानें बन्द होंगी। (तालियाँ)। भारतीय मानते हैं कि आखिर सरकार ढीली पड़ जायेगी। लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सरकार बिलकुल ढीली नहीं पड़ना चाहती। मैं भारतीयोंको चेतावनी देता हूँ कि हम कानूनको बराबर अमलमें लायेंगे। मुझे आशा है कि अखबारवाले स्पष्ट कर देंगे कि दिसम्बर ३१ के बाद हमेशाके लिए दरवाजे बन्द हो जायेंगे। मेरा भारतीयोंसे कोई झगड़ा नहीं। हम उनपर जुल्म करना नहीं चाहते हैं। हम तो आनेवाले भारतीयोंको रोकना चाहते हैं और इस मुल्कको गोरोंका मुल्क बनाना चाहते हैं। चाहे जो भी कठिनाइयाँ आयें, इसके लिए हम कृतनिश्चय हैं और इससे हमारी सरकार पीछे नहीं हटेगी। (खूब तालियाँ।)

ईसप मियाँका उत्तर

श्री ईसप मियाँने इस भाषणका जवाब दिया है। उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है:[]

संघकी बैठक

पिछले रविवारको हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी अनुमतिसे अंजुमनके सभा-भवनमें संघकी बैठक हुई थी। श्री ईसप मियाँ सभापति थे। सभा-भवन खचाखच भर गया था। चीनी संघके प्रमुख श्री क्विन और दूसरे चीनी भी उपस्थित थे। श्री ईसप मियाँके भाषणके बाद श्री गांधीने धरनेदारोंके सम्बन्धमें कहा कि उन्हें बिलकुल नम्रता बरतनी चाहिए। धरनेदार कभी एक जगह घेरा बनाकर न खड़े रहें। वे सिपाहीके समान हैं। और सिपाहीका काम यह है कि जो हुक्म दिया जाये उसके अनुसार बर्ताव करे, नियमोंका निर्वाह करे और अपनी जगहसे कहीं न जाये। सिपाहीको अपने से बड़ेके अनुशासनमें भी रहना चाहिए। जिन धरनेदारोंके नाम श्री गांधीके पास होंगे, वे यदि अपने कर्तव्यका पालन करते हुए गिरफ्तार किये गये तो उनका बचाव श्री गांधी करेंगे। लेकिन यदि उन्हें जुर्माना हो तो जुर्माना न देकर उन्हें जेल जाना है। बुरा बर्ताव करनेवाले अथवा मारपीट करनेवाले स्वयंसेवकोंका बचाव

  1. पाठके लिए देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ २७४-७५।