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एक पौंडका इनाम


तो जेल जाकर मामूली कष्ट सहन करना है और, व्यापारमें कदाचित, कुछ नुकसान उठाना है। क्या इतनेसे भी हम डरेंगे? हम तो आशा किये बैठे है कि कहीं इससे भी ज्यादा आवश्यकता हो तो भारतीय समाज नहीं डरेगा। डरना है केवल खुदासे। उसके बाद किसीसे भी डरनेकी बात नहीं रहती, यह सभी शास्त्र सिखाते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७

३. एक पौंडका इनाम

शीर्षक हमने इनामका दिया है, किन्तु पाठकको इनामकी ओर कम दृष्टि रखनी है। आजकल भारतीयोंके लिए मौसम नये कानून तथा जेलके प्रस्तावका है। इसलिए जो भारतीय गुजराती या हिन्दुस्तानी (उर्दू या हिन्दी) में जेलके प्रस्तावके समर्थनमें सरस गीत बनाकर भेजेगा उसे उपर्यक्त इनाम दिया जायेगा। हमें आशा है कि जिन्हें गीत रचनेका अभ्यास है वे इस प्रतिस्पर्धाको चूकेंगे नहीं। जरूरी यह है कि गीत पुरस्कारके लिए नहीं, बल्कि इज्जतके लिए बनाकर भेजा जाये। उसकी शर्ते निम्न प्रकार हैं:

(१) बीस लकीरोंसे ज्यादा न हो।
(२) शब्द सरल हों।
(३) राग चाहे जो हो, वीर-रसकी लावनी ज्यादा पसन्द की जायेगी।
(४) अक्षर साफ हों, स्याहीसे एवं कागजके एक ही ओर लिखा जाये।
(५) गीतके अन्तमें कविका नाम व पता दिया जाये।
(६) गीतमें मुसलमानों एवं हिन्दुओंकी बहादुरीके वर्तमान तथा प्राचीन उदाहरण दिये जायें। दूसरे होंगे तो वे भी चल सकेंगे।
(७) जेल जानेके प्रस्तावपर डटे रहनके सम्बन्धमें समय-समयपर जो ठोस कारण दिये जा चुके हैं उनका समावेश किया जाये।
(८) ये गीत अधिकसे-अधिक १२ जूनके सवेरे तक फीनिक्स पहुँच जाने चाहिए; अथवा जोहानिसबर्ग कार्यालय (बॉक्स ६५२२) में १४ जूनको मिलने चाहिए।

नतीजा २२ तारीखके अंकमें प्रकाशित किया जायेगा। आशा है, बहुत लोग प्रयत्न करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७