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२३१. पत्र: मगनलाल गांधीको

[जोहानिसबर्ग]
अक्तूबर १४, १९०७

चि॰ मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। श्री बद्रीसे कहना कि मैंने उन फीसोंको बहुत सावधानीसे दर्ज किया है। वे अनुपस्थित थे, इसलिए उनके लिए लिखे गये बहुत-से पत्रोंका मैंने कुछ नहीं लिया। फिर भी उनसे कहना कि वे मेरी लगाई हुई फीसोंकी कोई भी रकम काट सकते हैं। मैं उनका निर्णय स्वीकार कर लूँगा। जहांतक उनके कागजोंका सम्बन्ध है, मैं इस मामले में विचार कर रहा हूँ। मेरे बिलके विषय में तुम उनसे बहुत स्पष्ट बात कर सकते हो। मनमाने ढंगसे फीस लेकर मैं कभी उनके साथ विश्वासघात कर सकता हूँ, ऐसा वे सोचें तो मुझे उनके लिए अफसोस होगा। मैं चाहूंगा कि वे हर मदको देख जायें और जो उनको अनुचित लगे उसके आगे काटेका निशान लगा दें।

बँटवारेका जो हिसाब श्रीमती डोमनने भेजा है वह मुझे मिल गया है।

तुम्हारा शुभचिन्तक,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४७६९) से।

२३२. पत्र: पुलिस कमिश्नरको[१]

[जोहानिसबर्ग]
अक्तूबर १४, १९०७

पुलिस कमिश्नर
जोहानिसबर्ग
महोदय,

संयोगसे उस समय मैं अदालत में मौजूद था, जब श्री अलेक्जेंडरने अपने दो भारतीय मुवक्किलोंकी ओरसे कहा था कि वे वॉन बैंडिस स्क्वेयरके धरनेदारोंसे डरते हैं और इसी कारण उन्होंने पंजीयन प्रमाणपत्रके लिए प्रार्थनापत्र नहीं दिये। मैंने इस बयानका तब भी खण्डन किया था और अब भी करता हूँ। निःसन्देह पंजीयन कार्यालय में जानेवालोंपर कुछ भारतीय नजर रखते हैं। ऐसा वे उनको यह समझाने के खयालसे करते हैं कि एशियाई कानून संशोधन अधिनियमको मान लेनेपर उनकी स्थिति कैसी हो जायगी। साथ ही वे अपना प्रभाव डालकर उनको कार्यालय में जाने से रोकते भी हैं। किन्तु इस प्रकार समझानेपर भी यदि कोई कार्यालयमें जाना चाहता है, तो उसको बिलकुल तंग नहीं किया जाता। श्री अलेक्जेंडर जब मजिस्ट्रेट के सामने बयान दे रहे थे तब ऐसा एक मामला हुआ था। एक

  1. यह प्रथम १६-१०-१९०७ के स्टारमें प्रकाशित हुआ था।