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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि आतंककी कहानियाँ गढ़कर और पुलिस सुरक्षाकी माँग करके धरनेदारोंकी बदनामी करनेकी कोशिश की जा रही है। लेकिन, हमारे अपने "राष्ट्रीय चर" भी हैं और, निःसन्देह, वे अपनी संख्यामें वृद्धि करना चाहते हैं। धमकीका आरोप इसी उद्देश्यसे अपनाया गया एक तरीका है। यदि इस आरोपमें कोई सचाई है तो किसीपर मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया है? इसे साबित करना तो सबसे आसान बात होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि धमकियाँ वॉन बैंडिस स्क्वेयरमें, आते-जाते सैकड़ों लोगोंकी उपस्थिति में, दिन-दहाड़े दी जाती हैं।

जहाँतक जवाबी धमकीकी बात है, अनेक भारतीयोंका विश्वास है कि जिन भारतीयों के पास अनुमतिपत्र हैं—चाहे वे कप्तान हैमिल्टन फाउलके दिये हुए हों या श्री चैमनेके—वे पंजीयन अधिनियमके आगे न झुकनेके कारण अर्ध-सरकारी दवावसे बर्खास्त किये जा रहे हैं। ऐसा दबाव हो या न हो, मेरे सामने जर्मिस्टनके मुख्य मेटकी एक चिट्ठी पड़ी है, जिसमें इस सूचनाकी पुष्टि की गई है कि नौ भारतीय इसलिए बर्खास्त कर दिये गये कि उन्होंने नये अधिनियमके अधीन पंजीयन कराने के लिए प्रार्थनापत्र नहीं दिये। यह देखते हुए कि जनरल स्मट्स इस बातमें खुद ही अगुआ बने हुए हैं, इस घटनासे कोई आश्चर्य नहीं होता। उन्होंने सभी तरहकी सजाओंकी धमकी दी है—और जिन्हें देश-निकालेकी धमकी दी गई है उन्हीको परवाने छीन लेनेकी भी धमकी दी गई है। समझमें नहीं आता कि दोनों सजाएँ एक साथ कैसे दी जा सकती हैं। प्रवास अधिनियमके बिना जबर्दस्ती देश-निकाला मुमकिन नहीं है, और प्रवासी अधिनियमपर अभी शाही मंजूरी मिलनी बाकी है। भारतीय न्यायपूर्ण युद्धसे नहीं डरते, और जहांतक मैं समझ पाया हूँ, वे अन्यायपूर्ण युद्धके लिए भी तैयार हैं, यद्यपि वह सर्वथासे अ-ब्रिटिश होगा। भारतीयोंको गुलामीके चिट्ठ लेतेपर मजबूर करनेके लिए यूरोपीय मालिकोंकी सहायता क्यों ली जानी चाहिए? अबतक अनेक मालिकोंने इस प्रकारके दबावका विरोध किया है और भारतीयोंको अपनी नौकरी से निकालनेसे साफ इनकार कर दिया है। यह दोनोंके लिए श्रेयकी बात है—मालिकोंके लिए इसलिए कि वे अनैतिक रूपसे चोट करनेकी प्रक्रियामें भाग नहीं लेना चाहते, और भारतीयोंके लिए इसलिए कि वे इतने उपयोगी तथा स्वामिभक्त सेवक हैं कि उनको बर्खास्त नहीं किया जा सकता।

मुझे अभी पता लगा है कि जिन चार भारतीयोंकी ओरसे कहा गया था कि उनको धमकी दी गई है और जिनके बारेमें यह मान लिया गया था कि उनके पास अनुमतिपत्र नहीं हैं, उन्हें आज छोड़ दिया गया और खुली अदालत में यह भरोसा दिलाया गया कि उन्हें पंजीयन प्रमाणपत्र मिल जायेंगे। गुलामोंको तो उनके पट्टे मिलने ही चाहिए। मेरे विचारमें जिनके पास पुराने डच पास हैं—और कहा जाता है, इन लोगोंके पास हैं—उनके साथ भी वैसा ही बरताव किया जाना चाहिए, जैसा शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत अनुमतिपत्र लेनेवालोंके साथ किया जाता है। लेकिन सभी जानते हैं कि श्री जॉर्डनको ऐसे सभी आदमियोंको उपनिवेश खाली करके चले जानेका आदेश देनेके कष्टप्रद कर्तव्यका पालन करना पड़ा था। ऐसे एक आदमीको उसी दिन आदेश मिला जिस दिन उपर्युक्त चार आदमियोंने यह कहा था कि वे नये पंजीयन प्रमाणपत्रोंके लिए दर्खास्त देंगे। इस प्रकार जनरल स्मट्स वास्तव में अवैध निवासियोंमें से वैध निवासियोंकी तलाश कर रहे हैं। ये अवैध निवासी पंजीयन अधिनियमके अनुसार वाञ्छित लोग बन जायेंगे, क्योंकि वे उसके अन्तर्गत प्रमाणपत्रोंके लिए