पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३२५

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२३७. रिचकी सेवाएँ

श्री रिचने भारतीय समाजकी सेवामें हद कर दी। समितिके एक सदस्य लिखते हैं:

मैं लंदन समितिका उल्लेख करता हूँ तब आप उसे श्री रिचका उल्लेख समझें। इस समझदार, परोपकारी और आत्मत्यागी व्यक्तिका भारतीय समाज कभी पूरा अहसान नहीं मान सकेगा। मैं मानता हूँ कि यदि आप समितिको बनाये रखेंगे और श्री रिचको फिलहाल लंदनमें रहने देंगे तो आपको बहुत ही मदद मिलेगी। मैं समझता हूँ कि खासकर समितिको उपस्थितिके कारण ही ट्रान्सवाल सरकारके पैर ढीले हो गये हैं। यदि समितिको अधिक खर्च करनेकी अनुमति हो तो वह बहुत ही काम कर सकती है।

इन शब्दोंमें हमें कोई अतिशयोक्ति नहीं मालूम होती। हमें यह देखना है कि ऐसी मूल्यवान सेवाको हम धनकी कमीके कारण छोड़ न दें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१०-१९०७

२३८. ट्रान्सवालमें दूकान बन्द करनेके समयका कानून

नेटालके समान ट्रान्सवालमें दुकानें बन्द करने के सम्बन्धमें कानून बनेगा यह सब जानते थे। वह कानून अब प्रकाशित हुआ है और उसके आवश्यक अंशोंका अनुवाद हम अन्यत्र दे रहे हैं। हम ट्रान्सवालके भारतीय व्यापारियों और फेरीवालोंसे सिफारिश करते हैं कि वे उन धाराओंको पूरी सावधानी से पढ़ें। उनसे भारतीय व्यापारको थोड़ा-बहुत नुकसान होगा। परन्तु वह बरदाश्त कर लेने जैसा है। प्रत्येक व्यापारी और फेरीवालेसे हमारा अनुरोध है कि वह इन कानूनोंका पूरा-पूरा आदर करें। ऐसी बातों में यदि भारतीय कानून भंग करते हैं तो वे लोगोंकी नजरोंपर चढ़ जाते हैं, और हमारे दुश्मनोंको हमारे विरुद्ध हथियार मिल जाते हैं। जहाँ सभीको एक जैसे समयपर बन्द करनेका आदेश हो वहाँ किसीके लिए भी अपनी दूकान अधिक समय तक खुली रखनेकी गुंजाइश नहीं रहती।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१०-१९०७