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४. भारतमें उथल-पुथल

दुनियाके सभी हिस्सोंमें आज तरह-तरहकी घटनाएं हो रही हैं। जगह-जगह हम "हमारा देश" का नारा सुनते हैं। मिस्रवासी कहते हैं कि “मिस्र मिस्रियोंके लिए है"। चीनियोंने हाँगकाँगमें कई गोरोंको कत्ल कर दिया है। हब्शी कहते हैं कि "हमारे हक हमें मिलने चाहिए।" ईरानमें स्वराज्य स्थापित हो गया है। अफगानिस्तानकी ताकत बढ़ गई है। अब रहा भारत। वहाँ भी "भारत भारतीयोंके लिए"का नारा बुलन्द है, और उसके लिए जगह-जगह इस बातका प्रयत्न किया जा रहा है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता हो। पंजाबमें एक मुसलमानने 'हिन्दू-मुसलमान' नामसे एक पत्र शुरू किया है और वह कहता है, दोनों कौमोंमें एकता होनी चाहिए। दूसरी ओरसे 'वन्दे मातरम्' जैसे पत्र अंग्रेजी राज्यको उखाड़ फेंकनेके लिए आन्दोलन कर रहे हैं। 'पंजाबी' पत्रपर मुकदमा चल जानेसे वहाँ उपद्रव हो गया, जिसमें अग्रगण्य भारतीयोंने भी हिस्सा लिया। उनमें से कुछ लोग पकड़े गये हैं। कुछको देश-निकाला दिया जायेगा और कुछ जेल जायेंगे। लाला लाजपतराय' जैसे विद्वान सज्जन भी इनमें शामिल हैं। ऐसी परिस्थितिमें हम क्या करें, इसपर सामान्यतः विचार किया जाना चाहिए। हम कर तो कुछ नहीं सकते, किन्तु समझदार लोग इस बातका भी खयाल रखते हैं कि वे अपने मनकी वृत्तियाँ कैसी रखें।

क्या अंग्रेजी राज्यको भारतसे उखाड़ दिया जाये? और यदि उखाड़नेका विचार हो तो क्या उखाड़ा जा सकता है? इन दोनों प्रश्नोंका हम यह उत्तर दे सकते हैं कि उस राज्यको उखाड़ फेंकनेमें नुकसान है और हमारी हालत ऐसी नहीं कि हम उखाड़ना चाहें तो उखाड़ सकें। इस कथनसे हम यह सूचित नहीं कर रहे हैं कि अंग्रेजी राज्य बहुत भारी है और उससे भारतको अलभ्य लाभ हुए हैं: या, भारत यदि ठान ले तो अंग्रेजी राज्यको हटा नहीं सकता। किन्तु हम मानते हैं कि अंग्रेज लोग चाहे जितनी बेईमानीसे भारतमें घुसे हों, उनसे हमें बहुत सीखना है। वे बहादुर और विवेकी लोग हैं। कुल कुर्बान होते हैं। वह कौम जबरदस्त है तथा भारतको उसका कम बल नहीं। इसलिए भारतसे अंग्रेजी राज्य अस्त हो, यह चाहनेकी गुंजाइश ही नहीं रहती।

तब क्या लाला लाजपतराय जैसे पुरुषकी हम उपेक्षा करें? यह भी नहीं हो सकता। पंजाबके लोगोंको और उन दूसरोंको, जो अभी आन्दोलन कर रहे हैं, हम शूर-वीर मानते हैं। वे देशभक्त हैं और देशके लिए कष्ट झेल रहे हैं; और उस हद तक वे हमारे लिए आदरके पात्र है। किन्तु जिस हद तक वे अंग्रेजी राज्यको उखाड़ फेंकना चाहते हैं, उस हद तक भूल करते जान पड़ते हैं। उनके विद्रोहकी जो सजा कानून उन्हें देगा उसे, जान पड़ता है, उन्होंने भोगनेका निश्चय किया है। हमें उनका विरोध नहीं करना है। उनके कष्टोंसे भारतीय प्रजा सुखी होगी। वे विरोध करते हैं सो अंग्रेजी राज्यके दोषोंके कारण। अंग्रेजी

[१] 'पंजाब केसरी' लाला लाजपतराय (१८६५-१९२८); १९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशनके अध्यक्ष। उन्हें १९०७ में देशनिकाला दिया गया था। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १३४।

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