पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९९
जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

है। श्री ब्रिटलबैंकने भी उसी अखबारमें लम्बा पत्र लिखा है। उसमें ट्रान्सवालकी सरकारको फटकारा है। श्री बेगका एक पत्र 'लीडर' में भी प्रकाशित हुआ है।

'संडे टाइम्स'

अनाक्रामक प्रतिरोधके बादसे यह अखबार हर सप्ताह कोई-न-कोई चित्र छापा करता है। इस बार जो चित्र छपा है उसमें बिना काम मुफ्तकी तनख्वाह लेनेवाले पंजीयन अधिकारियोंके दफ्तरका दृश्य है। उसके परिचय में सम्पादकने लिखा है: सरकारको चाहिए कि वह "कुलियों" को जरूर बाहर निकाल दे।

हाजी हबीब

श्री हाजी हबीब डर्बनसे प्रिटोरिया आ गये हैं।

सारा नवम्बर क्यों कोरा रखा गया?

बहुत-से लोगोंने मुझसे पूछा है कि क्या सरकारको इतनी भूख लगी है कि वह सारा नवम्बर खा जायेगी? जब भारतीयोंपर मुकदमा ही चलाना है तो क्यों पहली नवम्बरसे शुरू नहीं करती? जान पड़ता है कि ये प्रश्न करनेवाले भाई 'इंडियन ओपिनियन' ठीक तरहसे नहीं पढ़ते। नहीं तो, जहाँ मैंने नोटिसके बारेमें समझाया है वहीं यह बात भी आ गई है। अब मैं पाठकोंको सलाह देता हूँ कि वे 'इंडियन ओपिनियन' बहुत ध्यानसे पढ़ा करें। उसे पढ़ने में बहुत दिन नहीं लगते। और मुझे विश्वास है कि उसमें जानने योग्य कुछ-न-कुछ तो उन्हें मिलेगा ही। इतना कह देनेके बाद अब मैं प्रश्नका उत्तर देता हूँ। जो नोटिस निकाले गये हैं उनके अनुसार जिन लोगोंके पास पहली दिसम्बरसे नये पंजीयनपत्र नहीं होंगे, उनपर मुकदमा चलाया जायेगा। सारा अक्तूबर महीना पंजीयनपत्रोंकी अर्जी लेनेमें बीतेगा। अर्जी प्राप्त होते ही पंजीयक महोदय उसका फैसला नहीं कर देते। अर्जी प्राप्त होनेके बाद जाँच करनेका उन्हें अधिकार है। जाँच करनेके लिए उन्हें कुछ समय चाहिए ही । सरकारने अर्जियोंकी जाँच करने के लिए चैमने साहबको नवम्बर महीना दिया है। इस बीच जिसने गुलामीकी अर्जी दी होगी, उसे गुलामीका पुरस्कार मिलेगा या नहीं, इसका फैसला होगा। अर्थात् दिसम्बर महीने में सबके पास पंजीयनपत्र हो, यह व्यवस्था हो गई। कोई पूछ सकता है कि भारतीय समाजने जब बहिष्कार किया है तब एक महीना और क्यों दिया गया? इसका उत्तर यह है कि सरकार बहिष्कारकी ओर ध्यान नहीं दे सकती। कहीं ३१ अक्तूबरको आसमान फट पड़े और पंजीयन कार्यालयमें अर्जियोंकी वर्षा हो जाये, तो उन अर्जियोंका फैसला करनेके लिए पंजीयकको समय तो मिलना ही चाहिए। इसीलिए दुर्भाग्यसे नवम्बरकी खाई पड़ी है।

धरनेदारोंकी आफत

मंगलवारको वकील श्री अलेक्ज़ैंडर और श्री डी'विलियर्सके पास दो-दो कोंकणी मुवक्किल थे। उनपर बिना अनुमतिपत्रके रहनेका आरोप था। दोनों वकीलोंने श्री जॉर्डनसे कहा कि इन कोकणियोंको धरनेदार डराते हैं, इसलिए ये पंजीयन कार्यालयमें नहीं जा सके। ये जानेको तैयार हैं। श्री अलेक्ज़ेंडरने कहा कि अदालतको धरनेदारोंको हटाना चाहिए। इसपर श्री गांधीने, जो वहाँ मौजूद थे, कहा कि धरनेदार बिलकुल धमकी नहीं देते और यदि कोंकणियोंका पंजीयन कार्यालय में जानेका विचार हो तो मैं स्वयं उन्हें ले जाऊँगा। यह बात