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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्भव है कि पुलिस अब आयुक्त (कमिश्नर) के पास जायेगी। इससे संघके मन्त्रीकी ओरसे पुलिस आयुक्तको निम्नानुसार पत्र लिखा गया है।[१]

इस किस्सेसे धरनेदारोंको ध्यान रखना है कि वे बहुत शान्तिसे काम करें। धरनेदारोंका काम लोगोंको समझाने के सिवा और कुछ नहीं है और जब उनके साथ पुलिस हो तब तो किसीको बीचमें बिलकुल ही नहीं पड़ना चाहिए। जो लोग गुलाम बनना ही चाहें, उन्हें किसीके रोकनेकी जरूरत नहीं है। ऐसे भी भारतीय मौजूद हैं जो कहते हैं कि धरनेदार धमकाते हैं। इससे मैं लज्जित हूँ और मानता हूँ कि हमारा कितना दुर्भाग्य है। हर भारतीयको समझा दिया गया है कि यदि उसे हाथ घिसना ही हो तो धरनेदार स्वयं उसे ले जायेंगे। इस चिट्ठीके छपनेके बाद अक्तूबरके और भी बारह दिन बचेंगे। इतने दिनोंमें बहुत रंग देखने को मिलेगा। जोहानिसबर्गके प्रत्येक भारतीय व धरनेदारको मर्दानगी, और साथ ही धीरज, नम्रता और मिठास दिखाना है। सामान्य लोगोंका काम है कि वे पंजीयन कार्यालयका बहिष्कार करें। नेताओंका काम है कि वे समझ व हिम्मत दें, और अपने पैसोंका त्याग करें। और धरनेदारोंका काम है कि वे धीरजसे अपना फर्ज अदा करें। उनके दबावकी जरूरत नहीं है, उनकी हाजिरीकी जरूरत है। हर स्टेशन और हर जगह, जहाँसे भारतीयोंका आना सम्भव हो, धरनेदार होने चाहिए। यदि धरनेदारको सरकार गिरफ्तार करे तो डरना नहीं है। यदि कोई धरना देते हुए पकड़ा जाये तो उसे याद रखना चाहिए कि जमानत नहीं देना है। और यदि सजा दी जाये तो जुर्माना न देकर जेल जाना है।

नौकरी छोड़ी लेकिन हाथ नहीं घिसे

श्री मुरगन, श्री अरमुगम, श्री हेरी, श्री व्यंकटापन, श्री मुथु, मिट्टी के बरतनोंके कारखानेमें काम करते थे। उन्हें हुक्म दिया गया कि उन्हें पंजीयन न करवाना हो तो नौकरी छोड़ दें। उन्होंने नौकरी छोड़ दी, किन्तु हाथ नहीं घिसे । ऐसा उत्साह हर भारतीयमें होना चाहिए। इन लोगोंको मैं हीरा समझता हूँ।

नामर्द पर्दानशीन हो गये

चार नामर्द कहींसे आये थे। वे पर्देवाली गाड़ीमें बैठकर पंजीयन कार्यालयमें घुस गये और वहीं उन्होंने अपने हाथ घिसाये। बुधवारको इस तरह चार आदमियोंने जोहानिसबर्ग कार्यालयमें अपनी इज्जत बेचकर स्वयं गुलामीका रुक्का लेनेके लिए अर्जी दी।

चेतो! चेतो! चेतो!

पंजीयन कार्यालय चाहे जिस तरहसे भारतीयोंको पंजीकृत करना चाहता है। मुझे आशा है कि इसका अर्थ प्रत्येक भारतीय समझ जायेगा। श्री स्मट्स जानते हैं कि यदि भारतीय मजबूत रहे तो किसीको बलात् जेल भेजकर पंजीकृत नहीं किया जा सकता। परवानेकी तकलीफ भी हजारों भारतीयोंको नहीं दे सकते और इसलिए आखिर उन्हें कानून रद करना ही होगा। इस बातको ठीक समझकर हर भारतीयको चेतना चाहिए और हिम्मतसे काम लेना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१०-१९०७
  1. देखिए "पत्र: पुलिस कमिश्नरको", पृष्ठ २९०-९१।