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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


और जहाँतक आपके संवाददाता द्वारा उल्लिखित सागर-तटपर बसे नगरके हिन्दू पुजारी की बात है, जर्मिस्टनमें निश्चय ही दंगा नहीं हुआ है। यह बिलकुल सच है कि उक्त पुजारीने उपनिवेशके अन्य हर पुजारीकी तरह ही, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान, एक ऐसे प्रश्नमें दिलचस्पी ली है जो पूरे भारतीय समुदायके कल्याणसे सम्बन्धित है। अपने धर्मसे प्रेम करनेवाले किसी भी भारतीयका आचरण इससे भिन्न नहीं होगा। क्या ऐसे मामले में, जिसमें ईश्वर और कुबेरमें से एकको चुनना हो, एक पुजारी अपने श्रोताओंसे यह अनुरोध नहीं कर सकता कि वह कुबेरकी ओर देखनेकी अपेक्षा ईश्वरकी ओर देखे?

[आपका, आदि,
ईसप इस्माइस मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७

२४२. स्वर्गीय श्री अलेक्जैंडर

डर्बनके भूतपूर्व मुख्य पुलिस अधिकारीकी[१] मृत्युके समाचारसे वहाँके पूरे समाजको दुःखद आघात पहुँचा है। जरसीके लिए रवाना होते समय श्री अलेक्ज़ैंडरका स्वास्थ्य बिल्कुल ठीक था और यह आशा की जाती थी कि वे अभी अनेक वर्षांतक जीवित रहकर सु-अर्जित विश्रामका उपभोग करेंगे। इस बातको याद कर अत्यधिक कष्ट होता है कि डर्बन नगरके सर्वोच्च पुलिस अधिकारीको जो थैली भेंट की गई थी वह ठीक ऐसे समयपर मिली थी कि उससे वे घर जा सके। वे डर्बनकी सर्वसमाजी आबादी के इतने प्यारे हो गये थे कि उसको बहुत समय तक याद आते रहेंगे। हम उनकी विधवाकी इस क्षतिमें हार्दिक सहानुभूति प्रकट करते हैं। दरअसल तो यह समाजकी भी क्षति है ।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७
  1. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २८८ और ४३०।