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ट्रान्सवालके भारतीयोंका कर्तव्य


लेकिन हम मानते हैं कि यदि दूसरे भारतीयोंका अच्छा-खासा भाग दृढ़ रहकर जेल जानेको तैयार रहा तो किसीको ट्रान्सवाल नहीं छोड़ना पड़ेगा। सभी हकदार भारतीय शान्तिपूर्वक ट्रान्सवालमें रह सकेंगे और नया कानून रद हो जायेगा। जो लोग मानते हैं कि वह रद नहीं होगा उन्हें, हम समझते हैं, खुदाकी सचाई और उसके अति पवित्र न्यायपर भरोसा नहीं है। इसलिए हम शेष भारतीयोंसे प्रार्थना करते हैं कि "आप भारतकी नाक रखें; सारी तकलीफें उठायें, किन्तु कानूनके सामने न झुकें।" 'कुरान शरीफ' के अन्तिम सूरेमें जो कहा गया है उसके अंग्रेजी अनुवादका गुजराती भाषान्तर हम नीचे दे रहे हैं:

कहो कि मैं उस खुदाकी शरण जाता हूँ जो सारे आलमका बादशाह है। वह मुझे शैतानके, दुष्टोंके तथा मनुष्योंके पंजेसे बचायेगा।

ये शब्द हर भारतीयको अंकित कर लेने चाहिए। अभी कायरोंके पंजोंसे बचनेका समय है। उपर्युक्त आयत हिन्दू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई, सबपर लागू होती है। सत्य तो एक ही है और खुदा भी सबका एक ही है। "आकार पानेपर नाम-रूप भिन्न हैं, सोना तो अन्त में सोना ही है।"[१]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७

२४६. ट्रान्सवालके भारतीयोंका कर्तव्य

इस शीर्षकसे हम कई बार लिख चुके हैं तथा और भी कई बार लिखना पड़ेगा। हमने श्री रिचका पत्र और संलग्न पत्रोंका अनुवाद करके दिया है। हम ट्रान्सवालके प्रत्येक भारतीयसे उसे पढ़ने का अनुरोध करते हैं। समितिका हर सदस्य उनके साथ है। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनका पत्र भी श्री मॉर्ले तक पहुँच गया है। उस पत्रकी चर्चा विलायत में हो रही है। सर जॉर्ज बर्डवुड भारतके बहुत ही समझदार, पुराने और जाने-माने सेवक हैं। उनका बहुत समय भारतीय परिषदकी नौकरीमें बीता है। उन्होंने लिखा है कि भारतीयोंकी लड़ाई उचित है। इसमें से कुछ भारतीयोंको कमजोर देखकर श्री रिच सोच-विचार में पड़ जाते हैं। मतलब यह कि समिति चाहती है कि हमें लड़ाई अन्ततक लड़नी चाहिए। अपनी लड़ाईका इस तरह प्रचार करने के बाद जो भारतीय अपने स्वार्थ या पैसेके लोभके कारण डरकर कानूनकी शरण चला जाये उसे हम अपना और अपने देशका दुश्मन मानते हैं।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७
  1. सुप्रसिद्ध गुजराती कवि नरसिंह मेहताके एक भजनसे। इन्हींकी एक रचना, "वैष्णव जन तो..." बादमें गांधीजीकी प्रिय प्रार्थना हुई। इस भजनमें सच्चे ईश्वर-भक्तके लक्षणोंका वर्णन है।