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२४७. लेडीस्मिथके भारतीय व्यापारी

लेडीस्मिथ तालुके में बारह भारतीय दूकानें बन्द हो गई हैं। इस खबरको हम बहुत ही बुरा मानते हैं। इन व्यापारियोंने परवाने के लिए फिर अर्जी दी थी। किन्तु उन्हें परवाने नहीं मिले, उलटे सूचना मिली कि यदि दुकानें बन्द न होंगी तो मुकदमे चलाये जायेंगे। इस सूचनासे डरकर व्यापारियोंने दूकानें बन्द कर दी हैं। हमारी तो खास तौरसे सलाह है कि अब भी वे अपनी दूकानें हिम्मतसे खुली रखें और व्यापार करें। बिना परवानेके व्यापार करनेपर यदि सरकार मुकदमा चलाये तो चलाने दिया जाये। मुकदमा चलनेपर यदि जुर्माना हो तो वह न दिया जाये। इसपर माल नीलाम होगा। हमारी राय है कि इस तरह माल नीलाम होने दिया जाये। इसमें हिम्मतकी जरूरत है। लेकिन यदि मर्द हिम्मत न दिखायेंगे तो कौन दिखायेगा? कोई कहेगा कि माल नीलाम होगा तो लोग बर्बाद हो जायेंगे। तो क्या दूकान बन्द होनेसे लोग बर्बाद नहीं होंगे? सरकार एक वक्त माल नीलाम करेगी, क्या हमेशा करेगी? सरकार एक व्यापारीपर मुकदमा चलायेगी, क्या सबपर चलायेगी? और यदि ऐसा करेगी तो क्या बड़ी सरकार हस्तक्षेप न करेगी? बड़ी सरकार द्वारा हस्तक्षेप किये बिना काम न होगा। यदि उसे हस्तक्षेप करना ही नहीं है, तो उसका भी अनुभव हो जाना चाहिए। यदि भारतीय प्रजा एकताके साथ लड़ाई लड़ेगी तो हमें विश्वास है कि नेटालका व्यापारी कानून रद होकर रहेगा। डर्बनके नेताओंसे हमारी सिफारिश है कि वे लेडोस्मिथ के व्यापारियोंसे मिलकर एकताके साथ लड़ाई लड़नेका निश्चय करें। यह आवश्यक है। हमारा दृढ़ मत है कि इसमें हिम्मतकी जितनी जरूरत है, उतनी पैसेकी नहीं। इस तरहकी लड़ाई लड़ने की हिम्मत रखनेवालेको इतना याद रखना चाहिए कि (१) लड़ाई पुराने भण्डारोंके सम्बन्ध में लड़ी जा सकती है; (२) दुकानें साफ होनी चाहिए; (३) दूकानदारोंपर कलंक न होना चाहिए। ऐसे दुकानदार हिलमिलकर लड़ेंगे तो सिवा जीतके और कोई परिणाम हो हो नहीं सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७