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भारतीय राजा

राज्यके कारण भारत कंगाल होता जा रहा है। भारतमें प्लेग फैला, उसका कारण भी बहुत-कुछ अंग्रेजी राज्य ही है। हिन्दू-मुसलमानके बीच वैर बढ़ानेवाला भी वही है। हम इतनी अधम स्थितिमें पहुँचकर आज नपुंसककी जिन्दगी बिता रहे हैं, उसका कारण भी अंग्रेजी राज्य ही है। इन दोषोंसे ऊबकर कुछ भारतीय नेता सारी अंग्रेज कौमको दोष देते हैं। उनके विद्रोहसे, सम्भव है, ये दोष कुछ हद तक दूर हो जायेंगे। इसके अतिरिक्त वे चूंकि हमारे ही भारतीय भाई हैं, इसलिए उनकी ओर जरा भी बरी भावना रखे बिना उनके जोशके लिए उन्हें धन्यवाद देना है।

वास्तवमें दोष हमारा है। हम अपने दोष दर कर लें तो जो अंग्रेजी राज्य आज दु:खस्वरूप बना हुआ है वह सुखस्वरूप बन सकता है। पश्चिमकी शिक्षा लिये बिना और चमके सम्पर्क में आये बिना लोक-भावनाका जाग्रत होना सम्भव नहीं है। यह भावना आ जाये तो अंग्रेज बिना लड़े ही हमारे अभिलषित अधिकार हमें दे सकते हैं, और हम यदि उन्हें जानेको कहें तो वे जा भी सकते हैं। अंग्रेजी उपनिवेशोंकी यही स्थिति है। उसका कारण यह नहीं कि वे गोरे वर्णके हैं, बल्कि यह है कि वे बहादुर हैं। यदि अपने अपेक्षित हक न मिलें तो वे नाराज हो सकते हैं, इसलिए वे एक कुटुम्बके माने जाते हैं।

संक्षेपमें हमें अंग्रेजी राज्यसे वैर नहीं है। विद्रोह करनेवालोंकी बहादुरी हमारे लिए गर्व करने जैसी है। जो बहादुरी वे बताते हैं वही हम भी दिखायें और अंग्रेजी राज्यके जानेकी इच्छा करनेके बजाय हम यह इच्छा करें कि उपनिवेशियोंके समान ही होशियार और जोशीले बनकर जो अधिकार हमें चाहिए उनकी माँग करें तथा लें; साथ ही साथ हम अंग्रेजी राज्यकी खूबियोंको जान लें और सीखें, तथा अधिक कुशल बनें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७

५. भारतीय राजा

माननीय स्वर्गीय अमीर अब्दुर्रहमान' लिख गये हैं:

अपनी यात्रामें मैंने एक खेदजनक बात देखी, जिसका मेरे मनपर बहुत असर पड़ा। बेचारे भारतीय राजाओंकी पोशाक औरतों-जैसी थी। वे बालोंमें हीरेकी पिनें लगाये थे; और कानोंमें कुण्डल, हाथोंमें पहुँची, गलेमें सोनेका हार और दूसरी चीजें, जो औरतें पहनती हैं, पहने थे। उनके इजारकी कलियोंपर रत्न जड़े हुए थे और इजारके नाड़ेमें लोलक लगे हुए थे, जो लगभग पाँव तक पहुँचते थे। वे अज्ञान, आलस्य और मौज-शौकमें मग्न थे। दुनियामें क्या हो रहा है, या क्या है, इसका उन्हें भान नहीं है। उनका समय शराब और अफीम पीनेमें बीतता है। वे मानते हैं कि अगर हम पैदल चलेंगे तो हमारे ओहदेमें खामी आयेगी।

[१]अब्दुर्रहमान खाँ (१८४४-१९०१); अफगानिस्तानके शासक, १८८१-१९०१।

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