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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३४२

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२५०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
हमीदिया अंजुमनकी सभा

हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी बैठक नियमानुसार गत रविवारको हुई थी। सभा भवन खचाखच भर गया था और लोगोंमें बहुत ही जोश था। इमाम अब्दुल कादिर सभापति थे। श्री रामसुन्दर पण्डितने जोशीला भाषण दिया और रेलवे सेवा में लगे भारतीयोंके साथकी भेंटका बयान किया। मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारने 'कुरान शरीफ' की आयत सुनाकर बताया कि खुदाकी कसम खानेके बाद मुसलमान कानूनके सामने झुक ही नहीं सकते। उन्होंने कहा कि श्री हेलूके नौकर यदि उन्हें प्रोत्साहन दें तो उनका भी बहिष्कार किया जाना चाहिए। समाजके आदमीको समाजके अन्दर गन्दगी फैलाने नहीं दी जा सकती।

श्री गांधीने प्रिटोरियासे आया हुआ हाजी हबीबका पत्र और क्लार्क्सडॉपके पत्र पढ़कर सुनाये और कहा कि किसीको बहिष्कारकी बात नहीं करनी चाहिए। लेकिन यदि बात निकले ही तो फिर उसके अनुसार काम करना चाहिए।

श्री अली भाई आकूजीने कहा कि यदि सभी गद्दारोंका बहिष्कार किया जाना तय हो, तो वे स्वयं श्री हेलूके कानमिया लोगोंको खींच लेनेकी तजवीज करेंगे। श्री एम॰ एस॰ कुवाड़ियाने कहा कि श्री हाजी हवीवने लिखा है कि जोहानिसबर्गके नेताओं में से कोई एक चोरीसे पंजीकृत हो गया है। किन्तु मुझे विश्वास है कि ऐसी कोई बात नहीं है। उन्होंने सभी गद्दारोंका बहिष्कार करने की बात पसन्द की। उन्हें ५० पौंडका लाभ होनेकी सम्भावना थी। फिर भी जब एस॰ बुचरने यह सूचना भेजी कि पंजीकृत हो जाओ तो आटा भेजूंगा, तब उन्होंने आटा लेने से साफ इनकार करके नुकसान उठाना मंजूर किया।

श्री उमरजी सालेने बहिष्कारका समर्थन किया। श्री इब्राहीम कुवाड़ियाने 'अल इस्लाम' का 'अनुमतिपत्रका पियानो' (परमिट-पियानो) लेख और कविता पढ़कर सुनाई। मौलवी साहबने फिरसे उठकर निवेदन किया कि हमीदिया इस्लामिया अंजुमनको राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्षके पास इस कानून सम्बन्धी लड़ाईके बारेमें लिखना चाहिए। यूरोपकी ओर जानेवाले जर्मन लाइनके जहाजोंके लिए पहले, दूसरे और तीसरे दर्जेके टिकट नहीं मिलते, इस सम्बन्ध में समाजकी ओरसे कुछ किया जाना चाहिए। बहिष्कारका रास्ता सरल है।

श्री इब्राहीम कुवाड़ियाने कांग्रेसको पत्र लिखनेके सम्बन्धमें मौलवी साहबके निवेदनका समर्थन किया। बाद में कुछ और सज्जनोंने भाषण दिये, और अन्तमें अध्यक्ष महोदयके भाषण के बाद सभा समाप्त हुई।

मद्रासियोंकी सभा

मार्केट स्ट्रीटमें मद्रासियोंकी सभा हुई थी। लगभग सौ व्यक्ति इकट्ठे हुए थे। श्री गांधीने उन्हें सारी हकीकत समझाई और सबने कानूनके विरोधमें अन्ततक दृढ़ रहनेका निश्चय किया।