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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

'ट्रान्सवाल लीडर' में लेख

पिछले शनिवारके 'ट्रान्सवाल लीडर' में संवाद है कि जान पड़ता है, भारतीय समाजका जोर घट रहा है; क्योंकि कुछ भारतीयोंने एक इमामको इस कारण पीटा कि वह एक भारतीयको अनुमतिपत्र कार्यालयमें ले गया था, उस भारतीयके कुत्तेको जहर दे दिया जिसने अनुमतिपत्र लिया, और जर्मिस्टनके हिन्दू पुरोहितने जर्मिस्टनमें उपद्रव खड़ा कर दिया। इसपर टीका करते हुए 'लीडर' कहता है कि यद्यपि मारपीट वगैरहमें भारतीय नेता शामिल नहीं होंगे, फिर भी भारतीय समाजके कोई भी व्यक्ति मार-पीट वगैरहके काम करेंगे तो उनकी ओर किसीकी सहानुभूति नहीं रहेगी और उनका नुकसान होगा।

ईसप मियाँका पत्र

इसके जवाब में श्री ईसप मियाँने निम्न पत्र[१] लिखा है:

महोदय,

अनाक्रामक प्रतिरोधी डराने-धमकानेका काम करते हैं, इस तथाकथित बातपर आपने जो नम्रतापूर्ण टीका की है उसके लिए मेरा संघ आभारी है।

किन्तु आपके पत्रमें प्रकाशित विवरण द्वेषभरा मालूम होता है। इस बातसे इनकार करनेमें मुझे जरा भी संकोच नहीं है कि लोगोंको डरा-धमकाकर उनमें आतंक पैदा किया गया है। पंजीयनको अच्छा न समझनेपर भी पैसेके लोभमें फँसकर कुछ लोग पंजीकृत होना चाहते होंगे। किन्तु उससे उन्हें सारे समाजसे बहिष्कृत होना पड़ेगा; और इसलिए कानूनके खिलाफ सारे समाजमें जो तिरस्कार फैला हुआ है उसे यदि बहिष्कृत होनेवाले लोग आतंक मानकर डरते हों तो उससे मैं इनकार नहीं करता। यह सही है कि कुछ पंजीकृत होने जा रहे थे और बादमें नहीं हुए। इसका कारण यह है कि धरनेदारोंने मिलकर जब उन्हें कानूनकी गुलामीका अर्थ समझाया और लालचकी बुराई स्पष्ट कर दी तभी उन्होंने पंजीकृत न होनेका निश्चय कर लिया था। भारतीय समाजको पंजीयनके लिए फुसलाने में सरकार कितना अथक परिश्रम कर रही है, इसे लोग नहीं जानते। धरनेदारोंने कभी भी धमकीका उपयोग नहीं किया। भारतीय समाजके जिम्मेदार लोग उनकी गतिविधिपर निगरानी रखते हैं।

दुर्भाग्यसे यह सच है कि एक इमामपर हमला हुआ, किन्तु भारतीयोंकी टुकड़ीने हमला नहीं किया था। हकीकत इस प्रकार है:

उक्त इमाम भारतीय नहीं, बल्कि मलायी है। हम लोगोंमें एक दरवेश साहब हैं। धर्मके मामले में वे बहुत ही कट्टर हैं। वे अपना सब समय मसजिदमें बिताते हैं। और रोटीके लिए, जब इच्छा होती है, खानोंपर पत्थर तोड़नेका काम करते हैं। वे किसीकी बात नहीं सुनते और सारे दक्षिण आफ्रिकामें शायद सबसे स्वतन्त्र मिजाजके हैं। जिन्होंने उन्हें और उनकी सादगीको देखा है वे उनका आदर करते हैं। उन्हें जब मालूम हुआ कि सदर मलायी इमाम भारतीय मुसलमानोंको अपनी पवित्र शपथ तोड़नेको बहका रहा है, उनका खून खौल उठा। वे जानबूझकर मलायी मसजिदमें गये और इमामसे

  1. मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवादके लिए देखिए "पत्र: 'टान्सवाल लीडर'को", पृष्ठ ३०२-०४।