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जोहानिसबर्गकी चिट्टी

चाहिए। जो खूनी कानून के सामने घुटने टेकेंगे उनके नये पंजीयनपत्र उनके लिए ही कच्चे पारेकी तरह फूट निकलेंगे और फिर वे हाथ मलते रह जायेंगे।

धरनेदारोंके बारेमें पुलिस आयुक्तका पत्र

पाठकोंको याद होगा कि धरनेदार बिलकुल बल-प्रयोग नहीं करते, ऐसा एक पत्र लिखा गया था। पुलिस आयुक्तने उसका जवाब निम्नानुसार दिया है:[१]

इस विषयमें कि आपके संघने वॉन बैंडिस स्क्वेयरमें अपने धरनेदार तैनात कर रखे हैं, आपका पत्र मिला। आप विश्वास दिलाते हैं कि पंजीयन कराने जानेवालोंको कोई व्यक्ति परेशान नहीं करेगा। इससे मुझे खुशी हुई है। मैं आशा करता हूँ कि उसके अनुसार आपकी कोशिश जारी रहेगी।

इस पत्रसे इतना स्पष्ट हो जाता है कि धरनेदार नियुक्त करनेमें दोष नहीं है। यदि वे हाथ चलायें या धमकी दें तो उसमें दोष है।

जनवरीमें परवाने बन्द?

यह सूचना 'गजट' में आ गई है कि जो पंजीयन नहीं करवायेंगे उन्हें जनवरीमें परवाने नहीं दिये जायेंगे। फिर भी हर शहरमें मुख्य-मुख्य भारतीयोंको लिखित सूचना दी जा रही है कि यदि वे ३१ अक्तूबरके पहले नये पंजीयनके लिए अर्जी नहीं दे देंगे, तो फिर नहीं दे सकेंगे और जनवरीमें परवाने भी नहीं मिलेंगे। इस तरहकी सूचना देकर रसीद भी ली जाती है। इसका क्या मतलब है? स्पष्ट है कि सरकार स्वयं डर गई है कि यदि भारतीय समाज कानूनके सामने नहीं झुकता तो फिर उसका कुछ भी बिगाड़ा नहीं जा सकता। इसलिए अब गड़बड़ी शुरू की गई है और सरकार धमकी देकर या फुसलाकर गुलामीका पट्टा दिलवाना चाहती है। इस तरहके चिह्न दिखाई दे रहे हैं, फिर भी ऐसे भारतीय मौजूद हैं जो अब भी नहीं चेतते और पैसेके मोहमें फँसकर पतंगोंके समान खूनी कानूनरूपी चिरागपर कूद पड़ते हैं, और जल मरते हैं। मैं आशा करता हूँ कि दूसरे भारतीय इन चिह्नोंसे सचेत होकर अन्ततक मजबूत रहेंगे।

जर्मन पूर्व आफ्रिका लाइन[२]

मौलवी साहबने हमीदिया सभामें कहा था कि इस कम्पनीके यूरोपकी ओर जानेवाले जहाजोंके लिए भारतीयोंको छत (डेक) के सिवा दूसरे स्थानोंके टिकट नहीं मिलते। यह मामूली बात नहीं है। इस विषयमें कुछ समयसे विवाद चला आ रहा है। मौलवी साहबके कथनानुसार इसमें मुख्य तकलीफ हाजियोंको हो सकती है। उपाय बहुत ही सीधा है। एक तो यह कि लाइनमें भिन्न-भिन्न जगहोंपर जो भारतीय एजेंट हैं वे ठीक प्रबन्ध करें; दूसरा उपाय सीधे बहिष्कारका है। इस लाइनको भारतीय यात्रियोंसे बहुत ही आमदनी होती है। यदि भारतीय यात्रियोंके साथ जानवरके समान व्यवहार होता रहा तो वह आमदनी बन्द हो सकती है। उसके लिए भारतीयोंमें भारी पैमानेपर प्रयास किया जाना चाहिए। ब्रिटिश इंडियन स्टीम नेविगेशन कम्पनी तथा दूसरी कम्पनियोंके साथ व्यवस्था की जा सकती है, तथा पहले मुगल लाइनके जो जहाज आते थे वे फिरसे शुरू किये जा सकते हैं। ऐसे कई उपाय हैं।

  1. मूल अंग्रेजी पत्र २६-१०-१९०७ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित हुआ था।
  2. देखिए "जर्मन पूर्व-आफ्रिका लाइन", ४२४-२५ भी।