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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'स्टार' को पत्र

भारतीय धरनेदारोंपर जो धमकीका इल्जाम लगाया गया है वह तो बिलकुल झूठ है। लेकिन यह सच है कि कुछ गोरे लोग अधिकारियोंकी सिखावनसे भारतीयोंको परेशान करते हैं और गुलामीका पट्टा लेनेके लिए धमकियाँ देते हैं। इसपर श्री गांधीने 'स्टार' को निम्न पत्र[१] लिखा है:

महोदय, जो पंजीकृत होना चाहते हैं उन्हें डरानेका आरोप सर्वथा निर्दोष धरनेदारोंपर बिना किसी सबूतके लगाया जाता है। इस आरोपके खोखलेपनकी ओर तथा पंजीकृत न होनेवालोंको जो सचमुच डराया-धमकाया जा रहा है उसकी ओर मैं लोगोंका ध्यान खींचना चाहता हूँ।

कलकी बात है। उसमें पीटर्सबर्गसे आये हुए तीन भारतीयोंको धरनेदारोंने स्वयं पंजीयन कार्यालयमें ले जानेको कहा था। किन्तु वह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया। फिर भी धरनेदारोंको बदनाम करनेके लिए यह ढोंग रचा जा रहा है कि डर लगता है। इस आधारपर पुलिसका संरक्षण प्राप्त करनेके प्रयत्न भी किये जा रहे हैं। यदि इस आरोपमें कुछ भी सचाई है तो फिर अभीतक किसीपर मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया? यदि वह सच ही है तो उसे सिद्ध करना सबसे आसान काम है। क्योंकि यदि डराने-धमकानेका काम होता होगा तो वह तो बैंडिश स्क्वेयरमें सरेआम सैकड़ों राहगीरोंके सामने होता होगा।

अब मैं इस विषयकी बात करूंगा कि जो लोग पंजीयन नहीं करवाना चाहते उन्हें धमकी दी जाती है। बहुतेरे भारतीयोंको लगता है कि जिनके पास कैप्टन फाउल अथवा श्री चैमने द्वारा दिये गये अनुमतिपत्र हैं उन्हें, नये पंजीयनपत्र न लेनेके कारण, आड़े-टेढ़े तरीकोंसे अधिकारीवर्गका दबाव पड़ने के कारण नौकरीसे अलग कर दिया जाता है। जमिस्टनमें भारतीयोंको नये कानूनके मुताबिक पंजीकृत न होनेके कारण नौकरीसे अलग कर दिया गया है। यह बात सच है—इस आशयका एक पत्र जमिस्टनके मुख्य धरनेदारके पाससे मुझे मिला है। दबावकी बात सच है या झूठ, यह उपर्युक्त पत्रसे मालूम हो सकता है। इससे हमें बहुत आश्चर्य नहीं होता; क्योंकि स्वयं जनरल स्मट्सने इस प्रकारकी धमकियाँ देनेमें पहल की है। उन्होंने हर प्रकारकी सजाकी धमकियाँ दी हैं। वे निर्वासित करने और परवाना छीनने—दोनों प्रकारकी सजाएँ एक साथ देनेको कह चुके हैं। ये दोनों सजाएँ एक ही व्यक्तिको एक साथ कैसे दी जा सकती हैं, यह मेरी समझमें तो नहीं आता। प्रवासी कानूनके बिना निर्वासित करना सम्भव नहीं है; और उस कानूनको मंजूरी तो अभी मिलनी ही बाकी है। भारतीय शुद्ध लड़ाईसे नहीं डरते, और जैसा मैं देख रहा हूँ, यदि सरकार अशुद्ध लड़ाई लड़ना चाहेगी तो उसमें जूझनेको भी वे तैयार हैं। लेकिन सरकारका ऐसा करना तो अंग्रेजोंके लिए अशोभनीय है। गुलामीके प्रमाणपत्रके लिए भारतीयोंपर जोरो-जबर्दस्ती करनेमें गोरे मालिकोंकी मदद क्यों ली जानी चाहिए? बहुत मालिकोंने ऐसे दबावका विरोध किया है और अपने भारतीय नौकरोंको बर्खास्त करनेसे साफ इनकार कर दिया है। इसके लिए दोनों आदरके पात्र हैं—मालिक

  1. मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवाद के लिए देखिए "पत्र: 'स्टार' को" पृष्ठ २९१-९३।