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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३४७

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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

इसलिए कि वे दगाबाजीमें शामिल नहीं होना चाहते, और भारतीय नौकर इसलिए कि वे इतने लायक और नमकहलाल हैं कि उनके मालिक उन्हें छोड़ नहीं सकते।

मुझे अभी ही मालूम हुआ है कि जिन चार भारतीयोंकी ओरसे यह कहा गया था कि उन्हें धमकी दी गई है और जिनके पास अनुमतिपत्र बिलकुल थे ही नहीं, वे आज छूट गये हैं; और उन्हें भरी अदालतमें विश्वास दिलाया गया है कि उन्हें पंजीयन प्रमाणपत्र मिलेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि गुलामोंको नये पंजीयन प्रमाणपत्र रूपी पट्टे मिलने ही चाहिए। मेरी रायमें जिन लोगोंके पास पुराने डच-पास हों (जैसा कि कहा गया है, चार व्यक्तियोंके पास हैं) उन्हें शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अनुसार दिये हुए अनुमतिपत्रवालोंके समान मानना चाहिए। लेकिन यह सब जानते हैं कि उन लोगोंको तो श्री जॉर्डनने उपनिवेश छोड़कर जानेके लिए नोटिस दिया था। जिस दिन उपर्युक्त चार व्यक्तियोंने नये पंजीयनपत्र लेनेके लिए अर्जी देनेको कहा उसी दिन उन जैसे पासवाले एक भारतीयको नोटिस मिला था। इसलिए जान पड़ता है कि जनरल स्मट्स इस खोजमें लगे हैं कि कौन कायदेके मुताबिक रह रहा है और कौन बेकायदे।

चिंदेसे सहायता

चिंदेके भारतीयोंने सहानुभूतिके तार ही नहीं, साथमें पैसे भी भेजे हैं। चिदेसे श्री इब्राहीम हाजी सुलेमान संघके नाम निम्नानुसार लिखते हैं:[]

वहाँकी मुसीबतोंमें हमारी पूरी सहानुभूति व्यक्त करनेवाला २२ अगस्तका हमारा तार आपको मिला होगा। हमें आशा है कि हमारे भाई अन्ततक उत्साह कायम रखेंगे।

२१ तारीखको हमारी सभा हुई थी। उसका विवरण न देकर मैं इतना ही सूचित करता हूँ कि उस सभा में बहुत-से भारतीय उपस्थित हुए थे और उत्साह बहुत था।

हमने उसी समय चन्दा भी वसूल किया और कुल मिलाकर ३३ पौंड १५ शिलिंग ९ पेंस जमा हुए। यह रकम यद्यपि हम बहुत कम मानते हैं, फिर भी आपको भेज रहे हैं। स्वीकार करें।

चन्दा देनेवालोंके नाम इसके साथ भेज रहा हूँ। बहुत से लोगोंकी सलाह है कि इस सूचीको 'इंडियन ओपिनियन' में प्रकाशित किया जाये। यह सूचना इसलिए नहीं दी गई कि वे अपना नाम अखबार में देखना चाहते हैं, बल्कि इस आशासे दी गई है कि इसे देखकर दूसरे लोग भी मदद करेंगे।

यह माँग ऐसी नहीं कि जिसे साफ नामंजूर कर दिया जाये। इसलिए वह सूची खुशी-खुशी प्रकाशनके लिए भेज रहा हूँ। चन्दा देनेवालों के नाम इस प्रकार हैं:[]

चिंदेके संघको आभारका पत्र भेज दिया गया है।

  1. मूल अंग्रेजी पत्र २६-१०-१९०७ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित किया गया था।
  2. इसके बाद मूलमें ४६ नामोंकी सूची दी गई थी, जो यहाँ नहीं दी जा रही है।