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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह चित्र बहुत-कुछ हूबहू है। आज कुछ भारतीय राजा लोग ऐसा नहीं करते, यह भी कहा जा सकता है। फिर भी आज हम यह सवाल नहीं उठा रहे कि कितने राजा ऐसा नहीं करते। हकीकत यह है कि यह स्थिति हमारे दारिद्रयका एक सबल कारण है।

फिर ऐसी अधम दशा सिर्फ राजाओंकी ही हो सो बात नहीं। प्रजामें भी ऐसी बातें बहुत दिखाई देती है। हमारी टीका खासकर हिन्दु भारतीयोंपर लागू होती है। बड़े माने जानेवाले लोगों और उनके लड़कोंके लक्षण बहुत-कुछ मरहूम अमीर द्वारा खींचे गये चित्रके समान ही दिखाई पड़ते हैं। मौज-शौक, आभूषण, रेशमी और सुनहरे कपड़े―सामान्यत: हम यही स्थिति देखते हैं। सभ्य माने जानेवाले लोग आभूषण आदि नहीं पहनते तो दूसरी तरहसे अपना शौक पूरा करते हैं। इसमें किसीको दोष देनेकी बात नहीं। जो रूढ़ि लम्बे समयसे चली आ रही है वह एकदम दूर नहीं हो सकती।

लेकिन हम दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीयोंको यह सबक लेना है कि हम सब, छोटे-बड़े, उन दोषोंसे मुक्त रहें। हमारी और हमारे देशकी स्थिति इतनी बुरी है कि हमारे लिए यह समय सदा शोकावस्थामें रहनेका है। जहाँ दर हफ्ते हजारों व्यक्ति भूख या प्लेगसे मरते हैं, वहाँ हम ऐशो-आराम कैसे भोग सकते हैं? हम निश्चित रूपसे मानते हैं, हर भारतीय पुरुषको अपना मन विरक्त कर लेना चाहिए। हमारी पोशाक वगैरहमें जवाहरात, रेशम या सोने आदिका दोष नहीं होना चाहिए।

इंग्लैंडका राजा

उपर्युक्त लेखका जबरदस्त समर्थन करनेवाली हमारी इस बारकी लन्दनकी चिट्ठी है। सम्राट एडवर्डका पौत्र आज १३ वर्षका है। उसे आज ही से सख्त तालीम दी जा रही है। उसे दूसरे लड़कोंके साथ पढना पड़ता है और जो सादा खाना दूसरे विद्यार्थियोंको दिया जाता है वही इस युवराजको भी दिया जायेगा। जिसका राजा इस प्रकारका आचरण करता है उस देशकी प्रजा भी ऐसी ही है। वह प्रजा यदि सुखी हो तो उसमें आश्चर्य ही क्या? हमें उससे ईर्ष्या नहीं करनी है, बल्कि उसके समान बनना है। कोई यह न सोचे कि वह प्रजा भी तो मौज-शौक करती ही है। इस विचारसे आलस्य प्रकट होता है। वे लोग अपना काम करनेके बाद मौज-शौक करते हैं, और वह मौज-शौक भी उन्हें शोभा देता है। इतना होनेपर भी हमें उनके मौज-शौक रूपी दोषका अनुकरण नहीं करना है। हमें तो हंसके समान अच्छेको चुन लेना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७