रहा। सजा सिर्फ दूकानके मालिकको ही हो सकती है। कानूनमें दूकान बन्द करनेका अधिकार नहीं है। और दूकानमें नौकर काम कर सकते हैं। इसलिए दूकान बन्द करनेका प्रश्न नहीं रहता। सिर्फ दूकानके मालिकको जेलकी असुविधा (मेरे हिसाबसे सुविधा) भोगनी होगी। मैं इस फैसलेको बहुत कीमती मानता हूँ।
आदातासे हर्जाना और खर्च मिल सकता है, यह बात भी बहुत प्रोत्साहन देनेवाली है।
इस मुकदमेका फैसला मालूम हो जानेपर भी यदि कोई भारतीय व्यापारी डिगता है तो मानना होगा कि हम इस खूनी कानूनके योग्य ही हैं।
शाहजी साहबको दण्ड
इमाम कमालीने शाहजी साहबके खिलाफ मार-पीट करनेकी फरियाद की थी। उस मुकदमेकी सुनवाई बुधवारको अदालतमें हुई थी। इमाम कमालीने उसमें बयान देते हुए कहा कि उन्होंने हलफनामा दिया, इसका उन्हें पछतावा है। कानूनके सम्बन्धमें दोनोंके बीच धर्म-विवाद हुआ था और शाहजी साहबने डंडा मारा था। परन्तु अब वे नहीं चाहते कि इसपर कोई सजा दी जाये। शाहजी साहबने भी उपर्युक्त मार-पीटकी बातको स्वीकार किया। अदालत ठसाठस भरी हुई थी। मजिस्ट्रेटने ५ पौंड जुर्माने या सात दिन जेलकी सजा दी। शाहजी साहबने जुर्माना देने से साफ इनकार कर दिया, लेकिन श्री गुलाम कड़ोदियाने जबर्दस्ती वह दे दिया।
ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिकी बैठक
संघ और भारतीय-विरोधी कानून निधिकी बैठक बुधवारको बारह बजे हुई थी। श्री ईसप मियाँ अध्यक्ष थे। श्री गांधीने कहा कि अब समाजको श्री दुर्लभ वीराका मुकदमा हाथ में लेना चाहिए। दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिको कायम रखनेकी व्यवस्था की जानी चाहिए और चूँकि समाजकी स्थिति डांवाडोल है इसलिए बेहतर होगा कि भारतीय-विरोधी कानून निधिकी रकम उनके हाथ में रखनेका निर्णय किया जाये। श्री उमरजी, श्री नायडू, श्री आमद मुसाजी और श्री फैन्सी उस सम्बन्धमें बोले और उसके बाद सर्वानुमतिसे निम्न प्रस्ताव पास किये गये:
(१) दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिको एक वर्ष चलाया जाये और नेटालसे पहले छः महीने के लिए सहायता मांगी जाये।
(२) श्री दुर्लभ वीराका मुकदमा संघ आगे बढ़ाये तथा उसपर २० पौंड तक खर्च किया जाये।
(३) भारतीय-विरोधी कानून निधिका हिसाब उठाकर वह रकम श्री गांधीके सुपुर्द की जाये।
और गद्दार
…[१]ने पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दिये हैं। मुझे यह सूचना देते हुए खेद है।
इंडियन ओपिनियन, २६-१०-१९०७
- ↑ मूलमें यहाँ चार नाम दिये गये हैं।