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२५१. पत्र: सर विलियम वेडरबर्नको

[जोहानिसबर्ग
अक्तूबर ३१, १९०७ के पूर्व]

सेवामें

सर विलियम वेडरबर्न
अध्यक्ष
ब्रिटिश समिति, भारतीय राष्ट्रीय महासभा

लन्दन
[महोदय,]

एशियाई पंजीयन अधिनियम के सम्बन्ध में जो नाजुक स्थिति यहाँ उत्पन्न हो रही है उसकी ओर मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। पंजीयनके लिए अन्तिम तिथि आगामी ३० नवम्बर है। उसके पश्चात्, विशेष मामलोंको छोड़कर, कानूनके अन्तर्गत दिये जानेवाले पंजीयन-प्रमाणपत्रोंके लिए भेजी गई अर्जियोंको सरकार स्वीकार नहीं करेगी। मेमन समाजको छोड़कर, भारतीय सामान्यतः पंजीयन कार्यालयमें नहीं गये हैं, और १३,००० अनुमतिपत्र-स्वामियोंमें से केवल २५० ने ही कानूनकी अधीनता स्वीकार करनेके सम्बन्ध में प्रार्थनापत्र भेजे है। इससे भावनाकी तीव्रता प्रकट होती है। राहत पानेका हमारे पास यह तरीका है कि कानूनको भंग करने के सब परिणामोंको सहन किया जाये। सम्भव है, कुछको, जो बहुत बड़े व्यापारी हैं, अपना सर्वस्व बलिदान करना पड़े। उनमें से बहुतेरे तो इस दुःखका अभी ही अनुभव कर रहे हैं, क्योंकि यूरोपीय थोक विक्रेताओंने भारतीय व्यापारियोंको, यदि वे पंजीयन प्रमाणपत्र पेश न कर सकें, उधार माल देना बन्द कर दिया है। गरीब भारतीय अपनी नौकरियोंसे हाथ धो बैठे हैं, और तब भी कानूनके प्रति वही विरोध और वही दृढ़ता बनी हुई है।

मेरे संघकी राय में यह प्रश्न साम्राज्यीय महत्त्वकी दृष्टिसे प्रथम श्रेणीका तथा भारतके लिए राष्ट्रीय महत्त्वका है। अतएव मेरा संघ आशा करता है कि यह मामला कांग्रेसके आगामी अधिवेशन में उत्साह के साथ उठाया जायेगा और भारतकी सर्वसाधारण जनता भी इस प्रश्नपर यथोचित ध्यान देगी। और इस उद्देश्य से मेरा संघ सम्मानपूर्वक आपकी सक्रिय सहानुभूति और प्रोत्साहनके लिए अनुरोध करता है। मेरे संघको लगता है कि प्रत्येक भारतीय, आपके कांग्रेसी पदसे अलग, आपको भारतका एक सबसे बड़ा शुभचिन्तक मानता है। मैं आशा करता हूँ कि हमारे इस वर्तमान संघर्ष में भी आप भारत में भारतीय विचारका वैसा मागदर्शन करेंगे जो वाञ्छनीय प्रतीत हो।

[आपका
ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-११-१९०७