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२५२. पत्र: उपनिवेश-सचिवको[१]

जोहानिसबर्ग
नवम्बर १, १९०७

सेवामें

उपनिवेश-सचिव

प्रिटोरिया
महोदय,

मैं आपकी सेवामें डाक-पार्सलसे एशियाई पंजीयन कानूनके विषय में ट्रान्सवाल-भरके ब्रिटिश भारतीयोंका प्रार्थनापत्र भेज रहा हूँ। साथमें अनुयाचकोंको दी गई हिदायतोंकी[२] एक प्रति भी है।

कुछ भारतीयोंने उक्त कानूनके अर्न्तगत बनाये गये विनियमोंमें संशोधनकी माँग करते हुए सरकारको एक पत्र लिखा था। जब उपनिवेशमें फार्म बाँटे गये उस समय तक उस पत्रका कोई उत्तर नहीं आया था और न ही उसे वापस लिया गया था। लेकिन तबसे यद्यपि सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूजके मुवक्किलोंको कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला है और फलतः उन्होंने अपना पत्र वापस भी ले लिया है, तथापि मेरे संघकी समिति चाहती है कि मैं उक्त प्रार्थनापत्र प्रेषित करूं, क्योंकि उसमें उसपर हस्ताक्षर करनेवाले लोगोंकी भावनाएँ सन्निहित हैं। मेरे संघकी नम्र सम्मतिमें, प्रार्थनापत्र उसके द्वारा अपनाये गये रुखका औचित्य पूरा-पूरा सिद्ध कर देता है, और उससे यह प्रकट होता है कि वह उपनिवेशमें रहनेवाले भारतीयोंके भारी बहुमतका प्रतिनिधित्व करता है। प्रार्थनापत्र कुछ दिनोंसे तैयार पड़ा था, लेकिन संघने इसे पेश करना रोक रखा, क्योंकि वह पंजीयन कार्यालयके जोहानिसबर्ग में खुले रहनेकी अवधिमें समाजकी गतिविधियोंकी परख करना चाहता था।

प्रार्थनापत्रपर ४,५२२ हस्ताक्षर हैं, और वे हस्ताक्षरकर्ता ट्रान्सवालके २९ नगरों, गाँवों और जिलोंमें से हैं। केन्द्रोंके अनुसार विश्लेषण इस प्रकार है: जोहानिसबर्ग, २,०८५; न्यूक्लेयर, १०८; रूडीपूर्ट, १३६, क्रूगर्सडॉर्प, १७९; जर्मिस्टन, ३००; बॉक्सबर्ग, १२९; विनोनी, ९१; मॉडरफॉटीन, ५१; प्रिटोरिया, ५७७; पीटर्सबर्ग और स्पेलोनकेन, ९०; वेरीनिगिंग, ७३; हाइडेलबर्ग, ६६; बैलफर, १४; स्टैंडर्टन, १२३; फोक्सरस्ट, ३६, वाक्स्ट्रम, १२; पीट रिटीफ, ३; बेथाल, १८; मिडलवर्ग, २९; बेलफास्ट, मेकाडोडॉर्प और वाटरवाल, २१; बार्बर्टन, ६८; पॉचेफ्स्ट्रम, ११४; वेन्टर्सडॉर्प, १२; क्लार्क्सडॉर्प, ४१; क्रिश्चियाना, २४; लिखतनबर्ग, ७; जीरस्ट, ५९; रस्टनबर्ग, ५४; अरमीला, २।

ट्रान्सवालमें भारतके हिन्दू, मुसलमान, ईसाई और पारसी हैं तथा मुसलमान तीन हिस्सोंमें बँटे हुए हैं: सूरती, कोंकणी तथा मेमन। उसी प्रकार हिन्दू भी गुजराती, मद्रासी

  1. नवम्बर २, १९०७ के इंडियन ओपिनियन में इस पत्रका सारांश प्रकाशित किया गया था।
  2. देखिए "भीमकाय प्रार्थनापत्र", पृष्ठ २३७-३८।