२५३. पत्र: 'ट्रान्सवाल लीडर' को
[जोहानिसबर्ग]
नवम्बर १, [१९०७]
'ट्रान्सवाल लीडर'
अपने आजके अंकके अग्रलेखमें आपने ब्रिटिश भारतीय संघपर एशियाई पंजीयन अधिनियमके बारे में यह वक्तव्य देनेका आरोप लगाया है कि जिन चार सौ व्यक्तियोंने अपना पंजीयन करवाया है, उन्हें ट्रान्सवालमें रहनेका कोई अधिकार नहीं है। संघके किसी पदाधिकारी द्वारा ऐसा वक्तव्य दिया जानेका मुझे कोई पता नहीं है। मैं जानता हूँ कि हमारे कुछ धरनेदारोंने कतिपय ऐसे वक्तव्य दिये थे, लेकिन यह केवल दुःसाहस था। मुख्य धरनेदार श्री नायडूने तत्काल इसका सुधार कर दिया था। लेकिन भूल सुधारका प्रकाशन आपकी रिपोर्टमें नहीं किया गया। संघने जो अधिकृत वक्तव्य दिया था, वह यह है कि कमसे-कम ऐसे चार व्यक्तियोंने, जिन्हें कानूनकी सरकारी व्याख्याके अनुसार इस देशमें रहनेका अधिकार नहीं है, पंजीयन-प्रमाणपत्रके लिए अर्जियाँ दी हैं और कदाचित्, उन्हें प्रमाणपत्र मिल भी गये हैं; संघ तो इन लोगोंको भी प्रमाणपत्रोंके अधिकारी नहीं समझता।
यदि सरकार अर्जियाँ लेनेके लिए दफ्तर खुला रखती है तो मुझे विनयपूर्वक इस बात से इनकार करना होगा कि यह कोई भलमनसाहत भरी रियायत है, क्योंकि यह अधिकांश भारतीयोंकी रायमें सरकार द्वारा अपनी कमजोरीको मंजूर करना होगा। ब्रिटिश भारतीय संघने अत्यन्त नम्रतापूर्वक तथा उच्चतर प्रेरणाके वशीभूत होकर सरकारको चुनौती दी है कि वह जितना बुरा कर सके, कर ले। हमें पंजीयनकी चिकोटियोंकी जरूरत नहीं है और यदि धरनेदारोंकी सतर्कताने भारतीयोंको उस चीजसे दूर रखा है जो उनकी नजरोंमें एक संकटका मूल है, तो यह सतर्कता प्रिटोरियामें भी बरती जायेगी।
आप पूछते हैं कि उस दशा में भारतीय विरोधसे क्या लाभ हो सकता है, जब कि जनरल स्मट्स धौंस-धमकी दे रहे हैं और साम्राज्य सरकार हस्तक्षेप करने से इनकार कर रही है। जहाँतक मुझे पता है, भारतीयोंको अन्तिम उपायके रूपमें न डाउनिंग स्ट्रीटके हस्तक्षेपमें विश्वास है और न ही जनरल स्मट्स द्वारा मानवताके सिद्धान्तके स्वीकार किये जानेमें। यद्यपि भारतीय समाज आज जो प्रयास कर रहा है, वह यदि सफल हो गया तो, निःसन्देह, भारतीयोंको उपनिवेशमें एक प्रतिष्ठा प्राप्त होनेकी आशा है, तथापि उन्हें यह भी अच्छी तरह मालूम है कि इस युद्धमें उनका सर्वस्व नष्ट हो जा सकता है। किन्तु अगर ऐसा हो जाये, जिसका मुझे यकीन नहीं है, तो कमसे-कम उन्हें आत्म-लाभ तो अवश्य ही होगा। और यदि उस लाभको तराजूके एक पलड़े में रखकर, दूसरे पलड़ेमें उस सम्पूर्ण लाभको रखा जाये