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पत्र: सर विलियम वेडरवर्नको

जो जनरल स्मट्स तथा उनका अधिनियम भारतीय समाजको दे सकता है, तो मुझे अपने देशवासियोंसे यह कहनेमें कोई हिचक नहीं होगी कि वे किसी भी कीमतपर दूसरे लाभको लेनेसे इनकार कर दें। और तब आप देखेंगे कि कानून द्वारा मिलनेवाली सारी सुविधाओंको तो हम प्राप्त करेंगे, लेकिन प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक या उससे भी सख्त कोई और कानून हमारे समाजको इस सीधे और तंग रास्तेसे नहीं हटा सकेगा। यदि उसने हटा दिया, और मैं यह नहीं कहता कि वह ऐसा नहीं करेगा, तो प्रत्येक भारतीय जानता है कि दोनों ओर खाई है।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लीडर, २-११-१९०७

२५४. पत्र: सर विलियम वेडरबर्नको

[जोहानिसबर्ग
नवम्बर २, १९०७के पूर्व]

सेवामें

सर विलियम वेडरबर्न
अध्यक्ष,
ब्रिटिश-समिति, भारतीय राष्ट्रीय महासभा

लन्दन
[महोदय,]

एशियाई पंजीयन अधिनियम के सम्बन्ध में मेरा संघ बड़ी सरगर्मीसे काम कर रहा है। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि दक्षिण आफ्रिकामें हमारे अपने बीच कोई जातिगत भेदभाव नहीं है। विभिन्न प्रान्तोंके हिन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई—सब मिलजुलकर सबके हितके लिए काम करते हैं। कुछ बातोंमें एशियाई पंजीयन अधिनियम भारतीय मुसलमानोंको विशेष रूपसे प्रभावित करता है। हमने सभी दलों और वर्गोंसे अपील की है; अतः मेरा संघ आपको इंग्लैंडमें भारतीय राष्ट्रीय महासभाका प्रतिनिधि मानकर आपसे भी अपील करता है तथा विश्वास करता है कि ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियमको, सामान्य दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नसे पृथक्, कांग्रेसके समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत प्रश्नोंमें प्रमुखता प्रदान की जायेगी। जैसा कि आपको विदित है, ट्रान्सवालकी विशेष कठिनाइयोंका सामना करनेके लिए हमने जो मार्ग अपनाया है उसे शायद साहसिक ही कहा जा सकता है। दक्षिण आफ्रिका में दूसरे कानूनों को बर्दाश्त किया जा सकता है और अबतक उनको बर्दाश्त किया भी गया है, परन्तु ट्रान्सवाल कानून तो असह्य है। दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे कानूनोंके अन्तर्गत भारतीयोंने उनके आगे झुकनेके बजाय उनका विरोध करके अपना सर्वस्व गँवा देनेकी प्रेरणाका अनुभव नहीं किया,