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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३७

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६. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

नया कानून: विशेष प्रश्न

इस कानूनके सम्बन्धमें अब भी प्रश्न आते रहते हैं। यह देखकर मुझे खुशी होती है। इस तरहके जितने भी प्रश्न पूछे जायेंगे उनका इस पत्रमें खुलासा किया जायेगा।

डच पंजीयनपत्रवाले क्या करें?

'गजट' की सूचनाके अनुसार एक भारतीयने अपने पंजीयनके आधारपर अनुमतिपत्र कार्यालयमें अर्जी दी है। उसके विषयमें श्री मुहम्मद दावजी पटेल वाकर्सट्रमसे नीचे लिखी बातें पूछते हैं:

(१) क्या निश्चित माना जाता है कि इस अर्जीको अनुमतिपत्र कार्यालय स्वीकार कर लेगा
(२) यदि ऐसा हो तो चौथे प्रस्तावमें अड़चन आती है, इसलिए वह व्यक्ति अपनी अर्जी वापस ले ले या नहीं?
(३) वापस लेनेपर पुलिस उसे पकड़ेगी या नहीं?
(४) यदि पकड़ लिया गया और मजिस्ट्रेटने बाहर जानेका हुक्म दिया तो फिर वह क्या करे?
(५) यदि वह व्यक्ति ऐसा करे और उसपर मुकदमा चले तो बचाव करनेके लिए श्री गांधी आयेंगे या नहीं?

इन प्रश्नोंके उत्तर ये है कि इस व्यक्तिको और ऐसी स्थितिके सभी व्यक्तियोंको जबतक नया कानून 'गज़ट' में नहीं आया है तबतक अर्जी वापस लेनेकी जरूरत नहीं और न ही इस विषयमें आगे कोई कार्रवाई करनेकी जरूरत है। नये कानूनके 'गजट' में आते ही अर्जी वापस ले लेनी होगी। शायद इस सम्बन्धमें मजिस्ट्रेटके सामने मुकदमा चलाया जायेगा और उस व्यक्तिका तथा उसके समान वैसे ही अन्य व्यक्तियोंका, जो पंजीयनके सच्चे हकदार होंगे,श्री गांधी बचाव करेंगे। यह बचाव किस प्रकार किया जायेगा, इसके लिए पिछली जोहानिसबर्गकी चिट्ठियाँ देख ली जायें। अनुमतिपत्र कार्यालयका बहिष्कार करनेका मतलब यह होता है कि आगे उस कार्यालयसे किसी भी प्रकारका व्यवहार न किया जाये। ट्रान्सवालमें रहनेवाले जिन लोगोंके मुकदमे अभी उस कार्यालयमें चल रहे हैं, उन्हें वापस नहीं लेना है। यह कदम 'गजट' में कानूनके प्रकाशित होते ही उठाया जाये।

श्री गांधी पहले जेल चले जायें तो क्या होगा?

एक भाई पूछते हैं कि श्री गांधीको यदि पहले जेलमें बैठा दिया गया तो फिर बचावका क्या होगा? यह प्रश्न ठीक किया गया है। किन्तु श्री गांधी किस प्रकार बचाव करनेवाले है, यह समझ लेना है। बचावमें गांधीको सिर्फ यही कहना है कि उनकी सलाहसे लोगोंने जेल जानेका निश्चय किया है। इसलिए पहले जेल उन्हें (श्री गांधीको) दी जानी चाहिए। इस तरह बचाव करनेकी जरूरत ही न पड़े और सीधे श्री गांधीको ही जेलमें बन्द कर दिया जाये तब यही माना जायेगा कि बचाव हो चुका। श्री गांधीको उपस्थितिका मुख्य हेतु

[]शीर्षकसे ये संवादपत्र “हमारे विशेष संवाददाता द्वारा प्रेषित" रूपमें इंडियन ओपिनियनमें हर हफ्ते प्रकाशित किये जाते थे। पहला संवादपत्र मार्च ३, १९०६ को प्रकाशित हुआ था देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २१५-१६।

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