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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

हुक्म दिया है कि श्री हाजी कासिम और उनके साथी भले ही हलफके बिना ही पंजीकरण करा लें। इसलिए अब मेमनोंका प्रकरण समाप्त हुआ। अब दूसरे भारतीयोंके बारेमें देखना बाकी है।

हमीदिया इस्लामिया अंजुमन

अंजुमनकी बैठक नियमानुसार हुई थी। मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारने ऐसा भाषण दिया कि कुछ लोगोंकी आँखोंसे आंसू बहने लगे। उन्होंने 'कुरान शरीफ' में से कई मिसालें देकर बताया कि इस कानूनके सामने झुकनेवाला अपने ईमानसे हाथ धो बैठेगा। श्री गांधीने पुलिस कमिश्नरके साथ अपनी भेंटका हाल संक्षेपमें सुनाया और सरकारको इत्मीनान कराने के लिए सलाह दी कि एक दिन धरना न दिया जाये। मौलवी साहबने फिर खड़े होकर यह सलाह दी कि एक व्यक्तिको खास तौरसे भारतमें जागृति फैलाने के लिए जाना चाहिए। श्री कुवाड़ियाने बताया कि पुलिसने श्री सालूजीकी मलायी पत्नी और उनके दो वर्ष के बच्चेका अँगूठा लगवाया है; और श्री बर्जेसने डरवनमें कुछ हिन्दुओंके अनुमतिपत्र फाड़ डाले हैं। श्री उमरजीने कहा कि नवम्बरमें नेताओंको गाँव-गाँव घूमकर लोगोंको सारी असलियत बतानी चाहिए।

एशियाई भोजनगृह

नगरपालिकान भारतीय भोजनगृहों और हब्शी भोजनालयोंके सम्बन्ध में नियम बनाये हैं। इन नियमोंमें एक यह है कि भोजनगृहके मालिककी अनुपस्थितिमें मैनेजर गोरा ही होना चाहिए। इसपर ब्रिटिश भारतीय संघने आपत्ति की है और सरकारको निम्नानुसार पत्र लिखा है:

मेरे संघने नगरपालिकाके उपनियमोंमें एक धारा यह देखी है कि एशियाई भोजनगृहोंके मालिक भोजनगृहोंमें सहायक मैनेजरोंकी जगह केवल गोरोंको ही रखें। इसके अलावा एशियाई भोजनगृहोंके मालिकोंको नोटिस द्वारा यह खबर दी गई है कि "नगरपालिकाको, सम्भव है, सहायक मैनेजरोंके नामोंकी जरूरत होगी। इसलिए प्रत्येक भोजनगृहका मालिक अपने सहायकका नाम तुरन्त भेजे।" इस सूचनासे प्रकट होता है कि नगरपालिका गोरे अथवा दूसरे किसी सहायककी नियुक्तिके लिए मालिकोंको बाध्य करना चाहती है।

एशियाई भोजनगृहोंकी संख्या बहुत थोड़ी है। हिन्दुओं और मुसलमानोंको अपने भोजनकी वस्तुओंके साथ गोरे सहायकका किसी भी प्रकारका सम्बन्ध होनेमें धार्मिक आपत्ति है। इसके अलावा इन भोजनगृहोंमें रोजाना दससे ज्यादा ग्राहक शायद ही जाते हों । इनके मालिकोंके लिए गोरे सहायकका खर्च उठाना सम्भव नहीं है ।

मेरे संघकी नम्र सम्मतिमें जो थोड़ेसे एशियाई भोजनगृहवाले हैं, उनपर इससे बड़ी मुसीबत आ जायेगी। इसलिए मेरा संघ आशा करता है कि सरकार इस प्रकारके नियमोंको मंजूर न करेगी।

इस कानूनके पास हो जानेका भय है। इसका अर्थ यह हुआ कि हिन्दुओं और मुसलमानोंको परोसनेवाला, और उनके लिए भोजन सामग्री आदि लानेवाला गोरा होना चाहिए। इस सबसे अत्याचारकी सीमा प्रकट होती है। मुझे तो एक यही बात सूझ सकती है कि यदि हम भारतीय इस नये कानूनके विरोध में हार खा गये तो फिर हमारा धर्म, प्रतिष्ठा आदि सभी चले जायेंगे।