बहादुर मुलतानी व्यापारी
"स्टार" में निम्नलिखित विज्ञापन प्रकाशित हुआ है:
"अनाक्रामक प्रतिरोधी पंजीयन नहीं करायेंगे। माल्टी फीता, 'टेनेरीफ' माल, जापानी और भारतीय रेशम आदि-आदि नीलाम करना है।"
यह विज्ञापन एक बहादुर मुलतानी व्यापारीने प्रकाशित कराया है। वह पंजीयनकी अपेक्षा जेल जाना ज्यादा अच्छा मानता है। यह कदम व्यवसायसे निवृत्त होकर सरकार जो भी करे उसको बर्दाश्त करनेकी तैयारीके तौरपर है।
अधिकारियोंकी व्यर्थ दौड़-धूप
अधिकारीगण अर्जियाँ लेनेके लिए इतनी बेकार दौड़-धूपकर रहे हैं कि उनका व्यवहार हास्यास्पद हो जाता है। इसका एक उदाहरण पिछले सप्ताह गिरफ्तार किये गये दो चीनी धरनेदारोंके मामलेसे मिलता है। अदालतमें यह बयान दिया गया था कि पुलिसके एक सिपाहीने, (जो पंजीयन अधिकारीके हाथका हथियार बन गया था), दो जुदा-जुदा वक्तोंपर एक चीनी धरनेदारको गाली दी थी और उसके ऊपर हाथ आजमानेका प्रयत्न भी किया था। न्यायाधीशने अभियुक्तोंको निरपराध मानकर छोड़ दिया। इस मुकदमेके दौरानमें प्रकट हुए गोरोंका व्यवहार और चीनियोंकी चतुरताको देखकर बहुतसे गोरोंका हृदय अनाक्रामक प्रतिरोधियोंकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रहा।
इंडियन ओपिनियन, २-११-१९०७
२६०. पत्र: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसको
जोहानिसबर्ग
नवम्बर ४, १९०७
मैं आपका तथा कांग्रेसका ध्यान ट्रान्सवालमें एशियाई पंजीयन अधिनियमको लेकर भारतीयोंकी जो नाजुक स्थिति हो गई है उसकी ओर आकर्षित करता हूँ। ब्रिटिश भारतीयोंको सूचना दी गई है कि उस घृणित कानूनके अन्तर्गत पंजीयन-सम्बन्धी प्रार्थनापत्र लेनेकी अन्तिम तारीख ३० नवम्बर है। उसके बाद खास मामलोंके अलावा सरकार पंजीयनका कोई प्रार्थनापत्र नहीं लेगी। सम्भवतः आपको यह पहले ही पता चल गया होगा कि समाजके कुछ थोड़े से आदमियोंके अलावा समूची भारतीय जनताने इस कानूनके अन्तर्गत पंजीयन करानेसे इनकार कर दिया है। मेरे संघका दावा है कि १३,००० अनुमतिपत्र-धारियोंमें से पंजीयन कराने के
- ↑ सन् १९०७ के सूरत कांग्रेसके २३वे अधिवेशनके अध्यक्ष।