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पत्र: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसको

लिए अबतक ३५० से अधिक भारतीयोंने अर्जियाँ नहीं दीं। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि इस मामलेमें भावना कितनी तीव्र है।

आपको पता लग गया होगा कि हमपर जो अन्याय हुआ है उसको दूर करानेके लिए हमने अनाक्रामक प्रतिरोधका रास्ता अपनाया है। हमने कानून तोड़नेके सभी नतीजोंको सहन करनेका निश्चय किया है। हममें से अनेक लोग अभी ही बड़े-बड़े नुकसान उठा चुके हैं; और आगे भी बहुत-से लोगोंको सर्वस्व गँवाना पड़ेगा। यहाँतक कि कई यूरोपीय थोक व्यापारियोंने भारतीय व्यापारियोंको, जबतक वे नये कानूनके अनुसार पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं दिखलाते, उधार देना बन्द कर दिया है। नौकर या मजदूरके रूपमें काम करनेवाले अनेक भारतीयोंने पंजीयन कराने के बजाय अपने मालिकों द्वारा नौकरीसे निकाल दिया जाना मंजूर कर लिया है।

जैसा कि आप भली भाँति जानते ट्रान्सवालके भारतीय समाजमें मुसलमान, हिन्दू, ईसाई और पारसी; मद्रासी, गुजराती, सिख, पठान, हिन्दी-भाषी और कलकत्तेके लोग—सभी शामिल हैं। इस अन्यायपूर्ण कानूनका विरोध करनेमें सब कन्धेसे कन्धा मिलाकर खड़े हैं; क्योंकि इससे हर भारतीयकी धन-दौलत छिन जानेका भय है और जिस आत्मसम्मानको उसने पिछले दमनकारी कानूनसे बड़ी कठिनाईसे बचाया है उसके पुनः नष्ट हो जानेका खतरा है।

मेरा संघ इस समय कांग्रेसकी सेवामें इस आशासे निवेदन कर रहा है कि ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियमको कांग्रेसके विचारणीय विषयोंमें प्रमुखता प्राप्त हो सके और वह, सामान्य दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नसे पृथक, उसके कार्यक्रमोंका मुख्य विषय बन सके। आज ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी भयानक स्थितिके सिवाय दक्षिण आफ्रिका सम्बन्धी और कोई प्रश्न नहीं है। जोकुछ आज हमारे ऊपर बीत रहा है वही कल दक्षिण आफ्रिका-भरमें हमारे भाइयोंपर बीतेगा। बल्कि, हमारे विचारमें, हमारा प्रश्न साम्राज्यके लिए सबसे अधिक महत्त्वका और भारतके लिए राष्ट्रीय महत्त्वका है; क्योंकि दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेश हमारे विरुद्ध जो कुछ करने में यहाँ कामयाब हो जायेंगे, साम्राज्यके दूसरे उपनिवेश उसीको अन्यत्र बसे हमारे भाइयोंके विरुद्ध आजमायेंगे। यह कहा जा सकता है कि ट्रान्सवालमें विशेष कठिनाईका सामना करनेके लिए हम लोग वीरोचित मार्ग अपना रहे हैं; किन्तु हम अपने आपको इस देशमें अपनी मातृभूमिका प्रतिनिधि मानते हैं, और देशभक्त भारतीयोंके रूपमें हमारे लिए अपनी जाति तथा राष्ट्रके सम्मानके अपमानको पी सकना असम्भव है। दक्षिण आफ्रिका में इन बातों को लेकर हमपर किसी और कानूनने इतनी भीषणतासे प्रहार नहीं किया, लेकिन ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम तो असह्य है। दक्षिण आफ्रिकाके अन्य सभी कानून आम तौरपर हमें धन-प्राप्तिके साधनोंसे वंचित करते हैं। ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियम तो हमें अपने पौरुषसे ही वंचित कर देता है और हमें गुलामीके दर्जेपर पहुँचा देता है। दिसम्बरके अन्ततक सम्भवतः अनेक भारतीय एक सिद्धान्तके लिए जेलके कष्ट सह चुके होंगे और पहली जनवरीको उन भारतीयोंको व्यापारिक परवाने देनेसे इनकार कर दिया जायेगा जिन्होंने नये कानूनके अनुसार अपना पंजीयन कराने से इनकार कर दिया है। इस प्रकार कांग्रेसका अधिवेशन आरम्भ होनेतक परिस्थिति अत्यन्त नाजुक हो जायेगी। हमारी मान्यता है कि हमारे अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलनको सभी धार्मिक व्यक्तियों, सभी सच्चे देशभक्तों और सभी ईमानदार और