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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विवेकशील व्यक्तियोंका समर्थन मिलना चाहिए। इस आन्दोलनमें ऐसी शक्ति निहित है कि हमारे प्रतिरोध न करने और खुशीसे कष्ट-सहनके कारण ही हमारे विरोधियोंको हमारा आदर करना पड़ेगा। इस विरोधके बारेमें हमारा संकल्प इसलिए और भी दृढ़ है कि हमारे खयालसे इस उपनिवेशमें छोटे पैमानेपर हमारा यह प्रयोग सफल हो या असफल, किन्तु प्रत्येक अत्याचार-पीड़ित जनता, प्रत्येक अत्याचार-पीड़ित व्यक्ति इसका अनुकरण कर सकेगा; क्योंकि अन्यायको दूर कराने के लिए इससे अधिक विश्वस्त और सम्मानपूर्ण अस्त्र आजतक नहीं अपनाया गया।

[ईसप इस्माइल मियाँ
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७

२६१. पत्र: अखबारोंको[१]

[जोहानिसबर्ग
नवम्बर ६, १९०७]

[महोदय,]

आपने अपने पत्रके आजके अंकमें एक वक्तव्य प्रकाशित किया है। आशयतः, वह वक्तव्य एशियाई अधिनियम संशोधन कानूनके प्रशासनके सम्बन्धमें आपके प्रिटोरिया-स्थित संवाददाताको दिया गया सरकारके वर्तमान रुखका अधिकृत स्पष्टीकरण है। लेकिन मेरे संघको यह देखकर खेद हुआ है कि उस वक्तव्यमें इतनी अधिक गलतफहमियाँ तथा गलतबयानियाँ हैं कि लगता है, शायद आपका संवाददाता उस स्पष्टीकरणकी तफसीलोंको, जो उपनिवेश-सचिवके दफ्तरसे जारी किया गया था, समझ ही नहीं सका। अपने संघकी ओरसे मैं उसमें दिये हुए कुछ तथ्योंका परीक्षण करनेके लिए आपकी आज्ञा चाहता हूँ।

पहली बात उसमें यह कही गई है कि भारतीय समाजकी ओरसे उपनिवेश-सचिवको ऐसे प्रार्थनापत्र दिये गये हैं जिनका उद्देश्य कानूनके प्रशासन सम्बन्धी विनियमोंमें कुछ सुधार कराना है। मेरा संघ इस बातका पूर्णतः खण्डन करता है । तथ्य ये हैं: ३० अगस्तको सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूजने विनियमोंमें कुछ संशोधन करानेकी दृष्टिसे "प्रिटोरिया, स्टैंडर्टन, पीटर्सबर्ग और मिडेलबर्गके कुछ प्रमुख भारतीयों की ओरसे माननीय उपनिवेश सचिवको एक प्रार्थनापत्र दिया था। सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूजके मुवक्किल यह दिखलाना चाहते थे कि वे बहुत से प्रतिनिधि भारतीयोंकी ओरसे बात कर रहे हैं। मेरे संघने इन तथ्योंका पता चलते ही प्रिटोरियाके इन सॉलिसिटरोंको एक पत्र लिखकर इस बातका खण्डन किया कि उन

  1. यह ट्रान्सवाल लीडर तथा स्टारको लिखा गया था।