लोगोंको भारतीय समाजकी तरफसे और, इसलिए, मेरे संघकी ओरसे बोलनेका अधिकार है। ऊपर मैंने जिस पत्रका हवाला दिया है उसकी भाषा यह सिद्ध करनेके लिए काफी है कि सरकारको जो प्रार्थनापत्र भेजे गये वे कुछ व्यक्तियोंने अपनी निजी हैसियतसे भेजे थे, और अबतक उनमें से अधिकतर व्यक्तियोंका पंजीयन हो चुका है। इन प्रार्थनापत्रोंके उत्तरमें माननीय उपनिवेश सचिवने प्राथियोंको सूचित किया था कि वे उनकी प्रार्थना स्वीकार करने में असमर्थ हैं; परन्तु उन्होंने विनियमोंमें कुछ छोटे-छोटे संशोधन कर दिये थे जिनका लगभग कोई मूल्य नहीं था। प्रिटोरियाके सॉलिसिटरोंने जिन लोगोंकी ओरसे यह काम किया था वे इस उत्तरसे इतने असन्तुष्ट हो गये थे कि उन्होंने सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूज़की मारफत इस आशयका उत्तर भेजा कि वे अपने ३० अगस्तके पत्रमें की गई प्रार्थनाको वापस लेना चाहते हैं, और माननीय उपनिवेश सचिवने जो सुविधाएँ देनेकी कृपा की हो उन्हें वे चाहें तो वापस ले लें। इस प्रकार यह साफ है कि भारतीय समाजने विनियमोंके मामले में माननीय उपनिवेश-सचिवके पास कोई प्रार्थनापत्र नहीं भेजा; और जो प्रार्थनापत्र भेजे गये वे कुछ विशेष व्यक्तियों द्वारा भेजे गये, तथा उन्हें भी उन्होंने पिछले महीनेकी १२ तारीखके पत्र द्वारा वापस ले लिया है।
अपने संघकी ओरसे मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यह आरोप बिलकुल गलत है कि भारतीय समाजने अब वह रुख अपनाया है कि जिसको अपनानेका, आन्दोलनकी प्रारम्भिक स्थितिमें, उसे साहस नहीं था। अगर उपनिवेश सचिवके विभागको इस बातका पता नहीं है कि इस कानूनका अनाकामक प्रतिरोध सितम्बर १९०६ से ही किया जा रहा है तो समझना चाहिए कि उसे कुछ भी मालूम नहीं है। अनाक्रामक प्रतिरोधकी शपथ जोहानिसबर्गकी सार्वजनिक सभा उसी माह ली गई थी और एशियाइयोंका पंजीयक खुद वहाँ मौजूद था। अधिनियमके मातहत बनाये गये विनियमोंके सवालमें किसी तरह भी पड़ने से मेरे संघने बराबर इनकार किया है। मेरे संघने स्वयं इस अधिनियमकी वैधताको आरम्भसे ही नहीं माना है, इसलिए यदि वह इसके छोटे-मोटे ब्यौरेमें जाता तो यह उसकी शानके बहुत खिलाफ होता। मेरे संघने जब इन नियमोंके अस्तित्वकी ही उपेक्षा की है तो यह किसी तरह नहीं कहा जा सकता कि उसने उन कथित संशोधनोंका खण्डन किया होगा जो माननीय उपनिवेश सचिवने समाजकी तथाकथित प्रार्थनापर ब्रिटिश भारतीयोंके हकमें किये थे। यह मान बैठना बिलकुल गलत है कि मेरे संघ और भारतीय समाजने अनाक्रामक प्रतिरोधका जो आन्दोलन छेड़ा है वह पंजीयनकी घोषणा होनेपर पिछले जुलाई मासमें शुरू किया गया। हमने तो पिछले साल आन्दोलन छेड़नेके समयसे ही इस अधिनियमको पूरी तरह रद करनेकी माँग कर रखी है।
मेरे संघने माननीय उपनिवेश-सचिवको अभी हालमें जो प्रार्थनापत्र भेजा है उसके बारेमें एक गौण प्रश्न उठाया गया है। इस प्रार्थनापत्र में और बातोंके साथ-साथ यह भी लिखा गया था कि इसपर हस्ताक्षर करनेवाले अपनेको उस पत्रसे पूर्णतया असम्बद्ध घोषित करते हैं जो सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूज़न अपने मुवक्किलोंकी ओरसे माननीय उपनिवेश सचिवको दिया था। इस प्रार्थनापत्रपर हस्ताक्षर करनेवालोंने विनयपूर्वक यह भी कहा था कि जो कठिन परिस्थितियाँ पैदा कर दी गई हैं वे इस अधिनियमको बिलकुल रद कर देनेसे ही दूर हो सकती हैं। इसमें कोई नई बात नहीं थी। आपके संवाददाताको सरकारी सूचना देनेवालेका