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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

मंशा यह जाहिर करना था कि माननीय उपनिवेश-सचिवने पिछले सितम्बरके अपने पत्र द्वारा विनियमोंमें जो मामूली सुधार सूचित किये थे उनके कारण भारतीय समाजने एक कथित रियायतका फायदा उठाया और इस अर्जीको इसलिए घुमाया कि जो कार्य निःसन्देह कृपाका समझा जाना चाहिए था उससे और फायदा उठाया जाये। तथ्य तो यह है कि जैसे ही मेरे संघको इस बातका पता चला कि सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूज़का ३० अगस्तका पत्र उपनिवेश सचिवको भेजा गया है, मेरे संघने पाँच विभिन्न भाषाओं में प्रार्थनापत्रके फार्म जारी किये और उनको सारे उपनिवेशमें भेज दिया। यह सितम्बरके आरम्भकी बात है। सितम्बरके अन्ततक जब माननीय उपनिवेश सचिवका उत्तर प्रिटोरियाके सोलिसिटरोंके पास आया, वे सभी फार्म ठीक तरहसे भरकर मेरे संघको लौटाये जा चुके थे। लेकिन चूँकि पंजीयनका काम अन्तमें जोहानिसबर्ग में होना था और इस कामके लिए आखिरी महिना अक्तूबर था, मेरे संघने यह तय किया कि अक्तूबरके अन्ततक दरख्वास्तको रोक लिया जाये, जिससे सरकारके सामने एशियाई कानून संशोधन नियमके विरोधमें भारतीय समाजकी एकताका प्रत्यक्ष प्रमाण उपस्थित किया जा सके; और यह काम सर्वश्री स्टैगमान, एसेलेन व रूज़के मुवक्किलोंका पत्र १२ अक्तूबरको वापस ले लिया जानेके बावजूद किया गया।

अब मैं पंजीयनकी अवधिको नवम्बरके अन्ततक बढ़ाने के सवालकी संक्षेपमें चर्चा करूँगा। मेरा संघ इस बातको जोर देकर कहता है कि यह फैसला अन्तिम क्षणमें किया गया था और मेरे संघके इस कथनका समर्थन वे वक्तव्य करते हैं जो मन्त्रि-परिषदके कमसे कम तीन मन्त्रियों द्वारा किये गये थे। यदि इसकी और पुष्टिकी जरूरत हो तो वह उस परिपत्रसे हो जायेगी जो १६ अक्तूबरको उपनिवेश सचिवके दफ्तरसे उपनिवेश-भरके आवासी मजिस्ट्रेटोंके पास भेजा गया था और जिसपर एशियाई-पंजीयकके हस्ताक्षर थे। उसमें कहा गया था कि आवासी मजिस्ट्रेट एशियाइयोंको सूचना दे दें कि "निश्चय किया गया है, पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र देनेकी अवधि, जो ३१ अक्तूबरको समाप्त होती है, आगे नहीं बढ़ाई जा सकती", और विभिन्न जिलोंमें रहनेवाले सभी एशियाइयोंको इस बातकी सूचना दे दी जाये कि वे पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र ३१ अक्तूबरको या उससे पहले जोहानिसबर्ग स्थित वॉन बैंडिश स्क्वेयरके पुराने डच गिरजाघर दें। ये सूचनाएँ बहुत स्पष्ट थीं। और यह साफ जाहिर है कि माननीय उपनिवेश सचिवने जब यह देखा कि सम्पूर्ण ट्रान्सवालसे २५ से अधिक प्रार्थनापत्र जोहानिसबर्ग में नहीं आये हैं तब उन्होंने अन्तिम क्षणमें, प्रार्थनापत्र देनेकी अवधिको एक मास और बढ़ानेका निश्चय किया। इस तरह यह बात ध्यान देनेकी है कि पिछली ४ तारीखके 'गज़ट' में प्रकाशित हुई क्रम संख्या १९०७ की सरकारी विज्ञप्तिमें उस अवधिको बढ़ानेकी कोई व्यवस्था नहीं थी, जिसमें पहलेसे पंजीयन न करानेवाले एशियाई नये कानूनके अनुसार पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दे सकते थे।

आखिरमें मेरा संघ एक और बातकी ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता है। प्रत्येक नगरके निवासी एशियाइयोंके उसी नगरमें अर्जी देनेकी अवधि निश्चित करनेके बजाय यह विज्ञप्ति निकाल दी गई कि जिन नगरोंका दौरा पंजीयन अधिकारी कर चुके हैं उन नगरोंके एशियाइयोंने यदि पहले अर्जियाँ न दी हों तो वे नव-विज्ञापित नगरमें अर्जियाँ दे सकते हैं। और चूँकि जोहानिसबर्ग वह अन्तिम विज्ञापित स्थान था, जहां ट्रान्सवाल-भरके एशियाई अपना पंजीयन करा सकते थे, तथा अन्य किसी स्थानपर नहीं, इसलिए मेरा संघ पंजीयक-