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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अभियुक्तको धीरज बँधाना है। यदि कौम और श्री गांधीके सौभाग्यसे उन्हें ही जेलमें बन्द कर दिया गया तब भी उसमें लोगोंके लिए डरने-जैसी तो कोई बात नहीं रहती। इसके अलावा श्री गांधी जेलमें बैठे-बैठे भी बचाव तो कर ही सकते हैं, यानी यह कि वे खुदासे प्रार्थना कर सकते हैं कि सब भारतीयोंको हिम्मत दे। इस समय मुझे यह भी कह देना चाहिए कि सारे भारतीयोंने जेलका प्रस्ताव स्वीकार किया है, उसका मुख्य कारण यह है कि नया कानून अपमानजनक है। इसलिए, प्रत्येक भारतीयको आखिर अपनो टेक तो रखनी ही है।

स्त्री-बच्चोंके भरण-पोषणके लिए निधि कहाँ है?

यह प्रश्न पूछनेवाले सज्जन लिखते हैं कि संघके पास तो बहत ही थोड़े पैसे हैं, फिर निर्वाह कहाँसे होगा? अभी कानून 'गजट' में आया नहीं है। उसके 'गजट' में प्रकाशित होते ही अग्रगण्य लोग गाँव-गांव जाकर लोगोंको समझायेंगे और चन्दा इकट्ठा करेंगे। इसके अलावा ईस्ट लन्दन और नेटाल के प्रमुख लोग लिख चुके हैं कि वहाँसे मदद दी जायेगी। इसीके साथ यह भी व्यवस्था हुई है कि श्री गांधीके जेल जानेपर 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादक श्री पोलक जगह-जगह जाकर चन्दा एकत्रित करेंगे तथा लोगोंको धीरज बँधायेंगे और समझायेंगे। कुछ गोरोंने भी मदद देनेको कहा है।

जर्मिस्टन बस्ती

जर्मिस्टन बस्तीमें भारतीयोंको काफिरोंके समान पास दिये जाते थे। उसके बारेमें ब्रिटिश भारतीय संघने स्थानीय सरकारको लिखा था। उसका उत्तर आया है कि अब वैसे पास नहीं दिये जायेंगे। अत: बस्तीमें रहनेवालोंको उन पासोंको मढ़वा कर नमूनेके तौरपर रखना हो तो रख सकते है। दूसरी बार यदि ऐसा हो तो भारतीयोंका कर्तव्य है कि पास न लें तथा उसके लिए साफ इनकार कर दें।

खान-मजदूरोंकी हड़ताल

हम अनुमतिपत्र कार्यालयके बहिष्कार और जेलकी बातें कर रहे हैं। खदानोंके गोरे मजदूर अधिक वेतनके लिए हड़ताल कर रहे हैं। फलस्वरूप लगभग दस खदानोंका काम रुक गया है। सब समझते हैं कि ये गोरे मजदूर जितना कमाते हैं वह सब खर्च कर देते हैं। उनमें कुछ विवाहित है। किन्तु अपनी रोजी तथा अपने बाल-बच्चोंका खयाल न करके, अपने हकके लिए, चालू रोजी छोड़कर बाहर निकल पड़े हैं। उनकी बेइज्जतीका तो कोई सवाल ही नहीं है। फिर भी जिसे उन्होंने अपना हक माना है उसके लिए अधिकारियों एवं करोड़पति खान-मालिकोंके सामने कमर कसी है। उनकी माँग उचित है या नहीं, इसपर अभी हमें विचार नहीं करना है। इस अवसरपर हमें तो उनके जोश और मर्दानगीका अनुकरण करना है।

ईस्ट लन्दनसे प्रोत्साहन और किम्बरलेकी गलतफहमी

ईस्ट लन्दनके भारतीयोंकी ओरसे संघके अध्यक्षके नाम सहानुभूतिपूर्ण पत्र आया है और श्री ए. जी० इस्माइलने लिखा है कि सारे भारतीय कानूनका अनादर करके निश्चित ही जेल जायेंगे। उन्होंने वहाँ मदद मिलने के बारेमें भी लिखा है। दूसरी ओर किम्बरलेसे सहानुभूतिपूर्ण तार आया है। लेकिन लिखा है कि भारतीय समाजको जेलका कदम उठाने के पहले विचार करना चाहिए। यह किम्बरलेकी गलतफहमी है। भारतीय कौम खदाको माननेवाली है, इसलिए अब वह उसका अनादर नहीं कर सकती। इसके अलावा पक्का विचार करने के