२६३. ईद मुबारक
हम कामना करते हैं कि हमारे मुसलमान पाठकोंको ईद मुबारक हो! मनुष्य बहुत बातोंकी कामना करता है, किन्तु सारी कामनाएँ पूरी नहीं हो सकतीं। इसी प्रकार यद्यपि हम चाहते हैं कि हमारे मुसलमान भाइयोंको ईद मुबारक हो, फिर भी जितना हमें ज्ञान है उसके अनुसार खुदाई नियम तो यह है कि जिसने रमजान शरीफका उच्च तरीकेसे पालन किया हो उसीको ईदका फल मिल सकता है। हमने तो यह पढ़ा और देखा है कि केवल रोजा रखने से यह नहीं माना जा सकता कि रमजान शरीफका पालन हो गया। रोजा तो मन तथा शरीर दोनोंसे रखा जाना चाहिए। यानी अन्य महीनोंमें नहीं तो कमसे-कम रमजानके महीने में पूरी तरहसे नीतिके नियमोंका निर्वाह करना चाहिए, सत्यका पालन करना चाहिए और क्रोधमात्रका त्याग करना चाहिए। जिसने इतना किया होगा उसके लिए हमारी कामना विशेष रूपसे सफल हो सकेगी, ऐसी हमारी धारणा है।
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७
२६४. नया वर्ष शुभ हो
जैसे हमने अपने मुसलमान भाइयोंको ईदकी मुबारकबादी दी है, वैसे ही हम अपने हिन्दू पाठकोंके लिए कामना करते हैं कि उन्हें नया वर्ष फले। नया वर्ष शुरू होनेके बाद यह हमारा पहला अंक है। हम देखते हैं कि ट्रान्सवालमें और, सच कहा जाये तो, सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रजा कष्ट भोग रही है। उन कष्टोंके परिणामस्वरूप लोगोंमें जैसे स्वदेशाभिमानका उत्साह बढ़ा है, वैसे ही उनकी दृष्टि देशकी ओर ज्यादा गई है; और धर्मकी ओर भी कुछ झुकाव हुआ है।
हिन्दू हिन्दूधर्मकी ओर अधिक आकर्षित दिखाई देते हैं, मुसलमान इस्लामकी ओर, और दूसरे भारतीय अपने-अपने धर्मोकी ओर। यही ठीक भी है। हमारा दृढ़ मत है कि यदि भारतका कल्याण होना होगा तो इसी मार्ग से होगा। हर धर्मवाले यदि अपने-अपने धर्मका सच्चा रहस्य समझ जायें, तो आपसमें द्वेष कर ही नहीं सकते। जलालुद्दीन रूमीके कहे अनुसार, या जैसा श्रीकृष्णने अर्जुनसे कहा है उसके अनुसार, नदियाँ बहुत हैं और अलग-अलग दिखाई देती हैं, फिर भी सबका मिलाप समुद्र में होता है। उसी प्रकार धर्म भले ही बहुत हों, फिर भी सबका सच्चा उद्देश्य एक ही है; खुदा या ईश्वरका दर्शन कराना। अतः उद्देश्यकी दृष्टि से धर्मोमें भेद नहीं है। हम लिखते हुए ऊपर कह गये हैं कि भारतीयोंको नया वर्ष फलीभूत हो। किन्तु जैसे ईद कुछ शर्तोंका निर्वाह करनेपर ही मुबारक हो सकती है—यह साफ मालूम होता है, उसी प्रकार नया वर्ष भी अमुक शर्तोंपर ही फल सकता है। इतना कहने के बाद इस सम्बन्धमें विवेचन करने की आवश्यकता नहीं रहती कि वे शर्तें कौन-सी हैं।
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७