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२६६. बढ़ाई गई अवधि

ट्रान्सवाल सरकारने 'पियानो बजाने' की अवधि बढ़ा दी है, सो क्यों? इस प्रश्नका उत्तर सरकारी नोटिस में ही है: "सरकारके सामने यह बात पहुँची है कि डर या अन्य कारणोंसे भारतीय पंजीयनके लिए अर्जी नहीं दे सके।" इसलिए अवधि बढ़ाई गई है। सरकारके पास इस प्रकारकी अर्जी भेजनेवाले भारतीयको क्या कहा जाये? क्या उसे भारतीय कहा जा सकता है? उसे मनुष्य कहा जा सकता है? अर्जी भेजनेवाला जानता है कि ऐसा करके उसने एक बहुत बड़े झूठका काम किया है। कोई भी व्यक्ति डर नहीं दिखाता और यदि डर दिखाया ही हो तो क्या वह अब बन्द है? धरनेदार अपना काम करते ही रहेंगे। समझानेवाले समझाते ही रहेंगे। फिर यदि अक्तूबरमें डरके कारण नहीं जाया जा सका तो नवम्बरमें कैसे जाया जायेगा? यदि मियाद माँगनी ही थी तो सीधे रास्ते माँगी जा सकती थी। मियाद न मिल सकती तो भी जिन्हें मुँह काला करना होता वे तो कर ही सकते थे। फिर भी इस सम्बन्ध में कुछ भी कहना बेकार है। एक गलतीके पीछे हमेशा कई गलतियाँ हुआ करती हैं। सरोवरका बाँध टूट जाये तो दरार बढ़ती ही जाती है। पंजीयनपत्र लेना गुनाह है, इसे लेनेवाला समझता है। इसलिए वह दूसरे अपराध करनेसे शरमाता नहीं, न डरता ही है। इतनी अधम स्थिति खूनी कानूनके सामने झुकनेवालेकी हो जाती है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७

२६७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
हमीदिया इस्लामिया अंजुमन

हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी बैठक नियमानुसार रविवारको हुई थी। बहुत लोग उपस्थित थे। इमाम अब्दुल कादिर अध्यक्ष थे। श्री मुहम्मदखाने श्री हाजी हबीबका पत्र पढ़कर सुनाया। वह पत्र प्रिटोरियाकी अंजुमनकी ओरसे आया था, और उसमें इस अंजुमनको इसके कामके सम्बन्ध में और धरनेदारोंको उनकी बहादुरीके सम्बन्ध में बधाई दी गई थी। बादमें श्री गांधी, श्री उमरजी साले तथा श्री एम॰ एस॰ कुवाड़ियाने कुछ बातें समझाई और यह विचार पेश किया कि प्रत्येक व्यक्ति अपने सगे-सम्बन्धियोंको लिखे कि नवम्बर महीनेमें कोई भी प्रिटोरिया न जाये; और यदि किसी कामसे जाना ही पड़े तो भी पंजीयन कार्यालयमें तो जाये ही नहीं। इस बातको सबने स्वीकार किया।

चीनियोंकी सभा

चीनियोंकी अपनी सभा हर रविवारको होती है। इस बार चीनी वाणिज्य दूत उपस्थित थे। श्री गांधीको विशेष तौर से बुलाया गया था। उन्होंने नवम्बरकी बात सुनाई और सभाने प्रिटोरियाको चीनी स्वयंसेवक भेजनेकी व्यवस्था की।