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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

नवम्बरमें "महामारी "

सबको डर था महामारी-स्वरूप पंजीयन कार्यालय शायद नवम्बरमें खुलेगा। हमने पिछले सप्ताह के 'इंडियन ओपिनियन' में देख लिया कि यह सत्य निकला। इस तरह कार्यालय खोलकर सरकारने साफ अपनी कमजोरी बताई है। यदि जनरल स्मट्समें भारतीयोंको देश-निकाला देनेकी हिम्मत होती तो वे नवम्बरमें अर्जी देनेकी मोहलत कभी न देते। कहाँ गया अक्तूबरका वह नोटिस, जिसमें लिखा गया था कि इस महीनेकी ३१ तारीखके बाद किसीका पंजीयन नहीं किया जायेगा? कहाँ गये गाँव-गाँवको लिखे वे पत्र, जिनमें सूचित किया गया था कि सबके लिए अक्तूबरमें अर्जी देनेका अन्तिम मौका है? हमें बताया—समझाया—जाता है कि जनरल स्मट्स अपना हठ कभी नहीं छोड़ते। किन्तु ['इंडियन ओपिनियन' के] सम्पादक महोदयने हमें बताया है कि स्मट्स साहब तीन बार दबावके कारण अपना हठ छोड़ चुके हैं। अब फिर यह चौथी बार अक्तूबरका नोटिस छूटा है। कोई यह प्रश्न पूछ सकता है कि इस बार उन्हें किस बातका डर था? इसका उत्तर सीधा है। उनपर बड़ी सरकारकी ओरसे निजी तौरपर यह दबाव होगा कि वे किसी भारतीयपर हाथ नहीं डाल सकते। यह अनुमान ठीक न हो तो शायद यह ठीक होगा कि श्री स्मट्सको अपनी इज्जत जानेका डर लग रहा है। चींटीको कुचलने में हाथीको बहुत विचार करना पड़ता है। स्मट्स साहब अपने मनसे हाथी हैं, और हम चींटी हैं। इसलिए चींटीको कुचलने में शरम आती है।

कमजोरीका दूसरा उदाहरण

पिछले सप्ताह मैं बता चुका हूँ कि अफवाह ऐसी है कि श्री गांधीपर सबसे पहले वार किया जायेगा, और सबको निर्वासित करने की तैयारी की जा रही है। अब मेरे हाथ में इस प्रकारका पत्र आया है।

काछलिया और रूज़के बीच हुई बातें

श्री काछलिया कहते हैं :

श्री रूज़के साथ मेरी बातचीत हुई थी। उन्होंने कहा था कि यहाँकी सरकारकी योजनाके अनुसार नेटाल सरकारने स्वीकृति दी है कि जब ट्रान्सवाल सरकार लोगों को निर्वासित करेगी उस समय गाड़ीको बालाबाला बन्दरगाहपर ले जाकर उन्हें सीधे जहाजपर चढ़ा दिया जायेगा। फिर उन्होंने विशेष जोर देकर कहा कि श्री गांधीको तो निर्वासित करना सरकार तय कर चुकी है।

यदि श्री गांधीको सबसे पहले निर्वासित किया जाये, तो उनके समान भाग्यवान और कौन होगा? और यदि वैसा हो तो भारतीय समाजमें घबड़ाहट पैदा होने के बजाय हिम्मत ही पैदा होगी। किन्तु इस प्रकार देश-निकाला देनेकी सत्ता अभी तो ट्रान्सवालको प्राप्त नहीं है, और उसे मिलनेमें देर लगेगी। श्री रूज़की कही बात सरकारको फूँ-फाँ है, यह साफ नजर आता है।

कैदी और गुलामीकी चिट्ठी लेनेवालेमें क्या अन्तर है?

ऐसी खबर मिली है कि अठारह अँगुलीवाले कागज पंजीयकके दफ्तरमें नहीं रहते। वे सब पुलिसके सुपुर्द कर दिये जाते हैं। जिस पुस्तकमें अपराधियोंका नाम दर्ज रहता है, उसीमें इन