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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

'बहादुर' भारतीयोंका नाम भी दर्ज रहेगा। यानी हर प्रकारसे कानूनके सामने झुकनेवाला अपराधी सिद्ध हो जाता है। अन्तर केवल इतना ही है कि चोर तो चोरी करके अपराधी ठहरता है और गुलामीका चिट्ठा लेनेवाला भारतीय केवल अपनी नामर्दीके कारण गुनहगार माना जाता है। इन दोनोंमें अधिक खराब कौन है, इसका निर्णय पाठक स्वयं करें। अठारह अँगुलियोंकी याद करते हुए बचपनकी एक कविता याद आ जाती है: "ऊँटके टेढ़े-मेढ़े शरीरमें अठारह बल होते हैं; बताओ उसे ढका जाये तो वह ढका कैसे रहे?"[१] ऐसा ही कुछ हाल अठारह अँगुलियाँ लगानेवाले भारतीयका भी मानें।

पूछताछ बिना

देशमें जब वर्षा बहुत होती है तब हरी सब्जी सस्ती हो जाती है। उसी प्रकार इस समय पंजीयन कार्यालयकी वर्षा हो रही है, इसलिए पंजीयन-पत्रोंका भाव सस्ता हो गया है। कहा जाता है कि लड़कोंको बिना पूछे ही पंजीयक महोदय पंजीकृत कर लेते हैं। इसमें मैं कोई दोष नहीं देख रहा हूँ। गुलाम बनने में कहीं भी कठिनाई नहीं होती। परन्तु यह सब तो शिकारको पकड़नेके लिए लार टपक रही ऐसा समझकर इससे दूर रहना चाहिए। इस टीकाकी आवश्यकता नहीं है। किन्तु मैं कभी-कभी सुनता हूँ कि "फलां व्यक्ति पंजीयन कराकर काम निकाल आया।" यह खयाल उसीको होता है जो कानून और हमारी लड़ाईको नहीं समझता। बाकायदा पंजीकृत होने में लाभ हो तो हमारी लड़ाई गलत है और पंजीयन करवाना कर्तव्य हो गया है, ऐसा कहा जायेगा। किन्तु पंजीयन करवाने में नुकसान है, पाप है, प्रतिज्ञासे भ्रष्ट होना है, इसलिए हम पंजीकृत नहीं होते। फिर, पंजीयनपत्र लेनेमें "काम निकाल लिया", यह कैसे कहा जा सकता है? हमारी लड़ाई मर्द बनने और मर्द बने रहनेकी है। फिर यदि कोई औरत बन जाये तो उसे हम "काम निकालना" क्यों समझें? हमें अपने मनमें इतना लिख रखना चाहिए कि जो पंजीकृत नहीं हुए वे आजाद हैं और आजाद रहेंगे। और ट्रान्सवालमें सम्मानपूर्वक रहा जा सकेगा तभी रहेंगे। तब जिन्होंने पंजीयन करवाया है उन्होंने तो अखण्ड गुलामी स्वीकार की है।

'ट्रान्सवाल लीडर' द्वारा सहायता

जिस प्रकार ब्लूमफाँटीनका 'फ्रेंड' मदद कर रहा है, उसी प्रकार ट्रान्सवालके अखबार भी आखिर मदद करने लगेंगे, ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं। बहुत-से गोरे तो सहानुभूति दिखाने लगे हैं। अखबार हमारी मदद करें या न करें, 'लीडर' ने अपने सोमवारके अंकमें जो लेख लिखा है वह हमें हिम्मत बँधाने लायक है। उसका सारांश नीचे देता हूँ:

कैसे?

कुछ भारतीयोंकी माँगके कारण सरकारने पंजीयनकी अर्जीके लिए एक महीनेकी अवधि और बढ़ाई है। महीना बीत जानेपर सरकार क्या करेगी, यह नहीं बताया गया। अवधि बढ़ानेका प्रस्ताव बहुत ही देरसे किया गया होगा, क्योंकि नोटिस दिया जानेके एक दिन पहले ही श्री सॉलोमनने घोषित किया था कि अवधि नहीं बढ़ाई जायेगी। क्या आखिरी घड़ी तक इस निर्णयका पता नहीं चला था? भारतीयोंकी अवधि बढ़ाने-

  1. अढारे वळ्यां ऊँटना अंग वांका; कहो, ढांकिये तो रहे केम ढांक्या?