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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/३८१

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पत्र: जनरल स्मट्सको


नवम्बर १ के 'लीडर' के लेखका तात्पर्य निम्न प्रकार था:

अक्तूबर पूरा हो गया फिर भी ८,००० में से केवल ४०० के लगभग पंजीकृत हुए हैं। और ये ४०० भी, ब्रिटिश भारतीय संघने बताया है, ऐसे हैं जिन्हें ट्रान्सवालमें रहनेका अधिकार नहीं है। ट्रान्सवालमें १,१०० चीनी हैं। उनमें से केवल दोने ही पंजीयन करवाया है और ये दो भी वर्णसंकर हैं। इतने लोगोंने पंजीयन नहीं करवाया फिर भी सरकार दृढ़ है। धरनेदारोंके द्वारा डराये-धमकाये जानेके कारण पंजीकृत होनेमें मुसीबतें थीं यह देखते हुए सरकारने अवधि बढ़ा दी है। यह समझ और दयाका काम है। सही ढंगसे या फिर गलत ढंगसे भी जब कानून सरकारी पुस्तकमे चढ़ चुका है तब हमें यही अधिक उचित मालूम होता है कि भारतीयोंको उसके सामने झुक जाना चाहिए। प्रधानमंत्रीने संसदमें हस्तक्षेप न करनेके सम्बन्ध में जो उत्तर दिया है और जनरल स्मट्सने जो कहा है वह जान लेने के बाद भी भारतीय यदि और भी विरोध जारी रखते हैं तो उसमें क्या लाभ?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-११-१९०७

२६९. पत्र: जनरल स्मट्सको

जो भीमकाय प्रार्थनापत्र हस्ताक्षरयुक्त फार्मोंके साथ उपनिवेश सचिवके नाम भेजा गया है और उसके साथ ब्रिटिश भारतीय संघ के अध्यक्ष श्री ईसप मियांने जो पत्र भेजा है, उन दोनोंका सारांश पिछले सप्ताहकी खबरोंमें छप चुका है। अब हम वह पूरा पत्र[] नीचे दे रहे हैं:

महोदय,

एशियाई कानूनके सम्बन्ध में ट्रान्सवालके भारतीयोंका एक भीमकाय प्रार्थनापत्र पोस्ट-पार्सल द्वारा आपके पास भेज रहा हूँ। हस्ताक्षर करनेवालोंको जो सूचनाएँ दी गई थीं उनकी प्रतियाँ भी साथ भेजता हूँ। ये फार्म हस्ताक्षरके लिए जब ट्रान्सवाल भेजे गये तब कुछ भारतीयोंकी ओरसे कानूनको धाराओंमें परिवर्तन करने के लिए सरकारको प्रार्थनापत्र दिया गया था। सरकारने उसका उत्तर नहीं दिया। और तबतक वह प्रार्थनापत्र भी वापस नहीं लिया गया था। बादमें श्री स्टैगमान, एसेलेन और रूज़के मुवक्किलोंको सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिला, इसलिए उन्होंने वह पत्र तो वापस ले लिया है; फिर भी मेरे संघकी समितिने मुझे प्रार्थनापत्र आपको भेज देनेका निर्देश किया है। क्योंकि, इससे आपको उसपर हस्ताक्षर करनेवालोंकी भावनाका पता लगेगा। मेरे संघकी नम्र रायमें संघने कानूनके खिलाफ जो रुख अपनाया है, उसके [औचित्यका] यह आवेदनपत्र एक जबरदस्त सबूत है; और इससे उपनिवेशके अधिकांश भारतीयोंके विचारोंका पता चल जाता है। यह आवेदनपत्र कुछ समय पहले तैयार हो गया था,

  1. मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवादके लिए देखिए "पत्र: उपनिवेश-सचिवको", पृष्ठ ३२०-२१।