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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

अधिनियमको माननेका खयाल सपने में भी नहीं कर सकता, जिससे वह वास्तवमें दासतामें बँध जाता हो।

अब चूंकि सब भारतीय पंजीयन अधिनियम अपने धर्म के विरुद्ध होने के कारण उसे स्वीकार न करनेके लिए एक गम्भीर शपथके द्वारा बँधे हैं, इसलिए यहाँ धर्म अधिक प्रमुख रूपसे सामने आता है। और इसलिए यदि कोई भारतीय किसी ऐसे भौतिक लाभके लिए, जो उसे मिल सके, अधिनियमको स्वीकार करता है तो वह अपनी अन्तरात्माका हनन करता है। फलतः उक्त पुरोहितने इस बातमें सक्रिय दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी है कि लोग पंजीयन न करायें और वे लौकिक सम्पदाको देखनेके बजाय पारलौकिक सम्पदाको देखें। यही कारण है कि जब जर्मिस्टनमें एशियाई पंजीयन कार्यालय खुला था तब उन्होंने मुख्य धरनेदारके रूपमें कार्य किया, जो विशुद्ध रूपसे समझाने-बुझानेसे सम्बन्ध रखता था।

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लीडर, १२-११-१९०७

२७२. रामसुन्दर पण्डितका मुकदमा[१]

[जर्मिस्टन
नवम्बर १४, १९०७]

श्री गांधी द्वारा जिरह करनेपर गवाहने[२] कहा कि समझौता यह था कि अभियुक्त तारीख २८ अगस्त १९०६ तक रहेगा। तबसे उसके अनुमतिपत्रकी अवधि कई बार बढ़ाई जा चुकी है, क्योंकि मुझे यह विश्वास दिलाया गया, और मैंने विश्वास किया भी, कि अभियुक्तको उपनिवेशमें जिस कार्यके सम्बन्धमें रहनेकी अनुमति दी गई है, वह यहाँ उसीको करेगा।

[गांधीजी:] क्या आपके पास इसमें सन्देह करनेका कोई कारण है कि अभियुक्त धर्मपुरोहित है और वही रहा है?

[गवाह:] यहाँ धर्म-पुरोहित बहुत-से हैं और धर्म-पुरोहित धर्मका प्रचार करते हैं। कोई पुरोहित ईसाई हो, या मुसलमान, या हिन्दू या किसी दूसरे धर्मका, जबतक वह अपने सिद्धान्तका प्रचार करता रहता है तबतक, मेरे विचारमें, वह वाञ्छनीय है; किन्तु जब वह अन्य सिद्धान्तोंका—मैं नहीं कहूँगा, राजद्रोहका—प्रचार करता है और अपने लोगोंको हिंसाके लिए भड़कानेके तरीके अख्तियार करता है, तब वह उससे भिन्न व्यक्ति हो जाता है, जैसा मैंने उसको उपनिवेशमें जाने की अनुमति देते समय समझा था।

उन्होंने क्या प्रचार किया?

क्या आपके पास इसका कोई प्रमाण है कि उन्होंने अपने धार्मिक सिद्धान्तोंके अलावा किसी दूसरी बातका प्रचार किया?

  1. देखिए "रामसुन्दर पण्डितका मुकदमा", पृष्ठ ३५१।
  2. एशियाई पंजीयक, मॉंटफोर्ड चैमने।