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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

पड़ा कि वह अभियुक्तसे सहानुभूति प्रकट किये बिना नहीं रह सकता। किन्तु, न्यायालय लाचार था और एक निरीह व्यक्तिको अफसरके पूर्वग्रह, अज्ञान, अयोग्यता तथा उद्धतताकी वेदीपर—ऐसे दुर्गुणोंकी वेदीपर जो निश्चय ही घोर रूपसे अ-ब्रिटिश हैं—बलिदान कर दिया गया।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-११-१९०७

२७७. कैक्सटन हॉलकी सभा

श्री अमीरअली तथा ब्रिटेनवासी मुसलमान ट्रान्सवालके भारतीय समाजके पक्षके समर्थनके लिए उसके धन्यवादके पात्र हैं। हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी ओरसे भारतीय मुसलमानोंको एक सर्वसामान्य पत्र[१] भेजनेका विचार सुन्दर था। समुद्री तारोंसे पता चलता है कि कार्यवाही उत्साहपूर्ण थी और सभामें अनेक प्रमुख यूरोपीयोंने भाग लिया था। विचित्र संयोग है कि सभा ९ नवम्बरको, जो सम्राट्का जन्म-दिवस है, हुई। अगर श्री अमीरअली और उनके श्रोताओंको यह मालूम होता कि जिस समय वे ट्रान्सवालके पददलित भारतीयोंके पक्षमें न्याय और मानवताकी मांग कर रहे थे, उस समय ट्रान्सवाल सरकार एक भारतीय पुरोहितको अपने अत्याचारका शिकार बना चुकी थी, तो न जाने उनकी भावना क्या होती? हमको रायटरसे पता चला है कि एशियाई अधिनियमकी भर्त्सनाके भाषणोंके बीच-बीचमें "शर्म-शर्म" और "अशोभनीय" की आवाज गूंज उठती थी। इस महत्त्वपूर्ण सभाकी अवहेलना करनेका एक तरीका यह है कि इसे स्थानीय स्थितिसे अनभिज्ञ लोगोंकी राय कहकर टाल दिया जाये। एक दूसरा तरीका यह है कि इसे उस असंतोषका प्रतीक मान लिया जाये जो हजार-हजार भारतीयोंके हृदयमें व्याप्त है। यदि इसे दूसरे दृष्टिकोणसे देखा जाये तो इस सभामें पास किये हुए प्रस्तावपर ट्रान्सवाल सरकारको हार्दिक और सहानुभूतिपूर्ण ढंगसे गौर करना चाहिए। किन्तु हम यह महसूस करते हैं कि जबतक साम्राज्यीय सरकार कोई प्रभावकारी कार्रवाई नहीं करती, ट्रान्सवालके अधिकारी भारतीयोंकी कही हुई हर बात अनसुनी कर देंगे, चाहे वे भारतीय कितने भी प्रभावशाली तथा जानकार हों। कुछ भी हो, इस सभाने एक काम तो अवश्य ही किया है कि संसार-भरके मुसलमान अब यह महसूस करने लगे हैं कि उनको महज अपने सहधर्मियोंके प्रति ही सहानुभूति नहीं होनी चाहिए और न महज उनके लिए ही काम करना चाहिए, बल्कि उनको अपना कार्यक्षेत्र हिन्दुओं तक भी बढ़ाना चाहिए। यह एक अच्छा लक्षण है और इससे पता चलता है कि हम उस समयकी ओर बहुत शीघ्रतासे अग्रसर हो रहे हैं जब जाति तथा धर्मका विचार किये बिना मनुष्य मनुष्यके लिए काम करेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७
  1. देखिए "भारतीय मुसलमानोंसे अपील", पृष्ठ १७९-८०।