२७८. लाजपतरायकी रिहाई
ट्रान्सवालके भारतीयोंके लेने लायक सीख
लाला लाजपतराय तथा उनके सेनापति अजीतसिंह छूट गये हैं। देश-निकाला तो भोगा, किन्तु पंजाबके जमीन-सम्बन्धी कानूनको रद करवा दिया है। यह जीत अनाक्रामक प्रतिरोधकी सफलताका जबरदस्त सबूत है। यह ताजा उदाहरण सामने होते हुए भी क्या ट्रान्सवालके भारतीयों में किसीके डगमगाते रहने के लिए कारण रहेगा? हम आशा करते हैं कि कदापि नहीं रहेगा। उलटे, जिन्होंने अर्जी दी है वे भी यदि लाजपतकी जीतका अर्थ समझ सकेंगे, तो अर्जी वापस लेनेका अवसर, यानी नये पंजीयनपत्र लेने न जानेका अवसर, होनेपर उसे चूकेंगे नहीं। क्योंकि यह तो सब स्वीकार करते हैं कि एशियाई खराब है। पंजीकृत होनेवाले केवल स्वार्थसे अन्धे होकर तथा जेलसे डरकर इस गुलामीके चक्रमे फँसे हैं। लाजपतकी विजय बताती है कि डरनेवाले औरतें हैं और हारे हुए हैं, जबकि लड़नेवाले मर्द और जीते हुए हैं। आजकल जो लक्षण दिखाई पड़ते हैं उनसे भी यह प्रकट होता है कि लड़नेवाले जीते हुए हैं। शर्त केवल यह है कि लड़ना हो तो, जेल और देश-निकाला भोग कर भी अन्ततक लड़ें; और लाजपतका उदाहरण भी यही बताता है। इसलिए ट्रान्सवालके भारतीय "हिन्दके लाला" के देश-निकालेसे आवश्यक सबक लेंगे और उसके अनुसार आचरण करने के लिए छाती तानकर तैयार रहेंगे तो हम बिना किसी संकोचके कहते हैं कि उन्हें विजय अवश्य मिलेगी।
इंडियन ओपिनियन, १६-११-१९०७
२७९. सम्राट्की सालगिरह
हम मानते हैं कि महाराज एडवर्डको उनकी सालगिरहपर भारतीयोंकी ओरसे मुबारकबादीका तार भेजा गया सो ठीक हुआ। हम सच्ची प्रजा हैं। विवेक हमारी हड्डियोंमें रमता है। यदि तार न जाता तो माना जाता कि हम विवेकको भूल गये हैं। उसमें हमने गलत खुशामद नहीं की। हमने फायदेके लालचसे तार नहीं भेजा; बल्कि इसलिए भेजा है कि सम्राट्की मंगल कामना करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।
फिर भी ऐसा तार क्यों भेजा जाये? हमें सालगिरहके दिन तीन भेंटें प्राप्त हुई। रामसुन्दर पण्डित व्यर्थ पकड़े गये। इसमें धर्मकी हानि हुई। वे हिन्दू हैं, फिर भी धक्का पूरे समाजको लगा है। हजके लिए जानेको पारपत्र (पासपोर्ट) नहीं मिलते। जोहानिसबर्ग आदिमें परवाने नहीं मिलते। मतलब यह कि जब सभी खुशी मना रहे हैं तब भारतीयोंके लिए शोक मनाने जैसा रहा। तब भी क्या हम सालगिरहका तार भेजें?
कांग्रेसके भूतपूर्व तीन अध्यक्षोंके मनमें यह विचार उठा, और वह ठीक ही उठा। उन्होंने कहा कि यदि तार भेजना ही हो तो हमें उपर्युक्त दुःख भी साथमें रोना चाहिए।